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________________ श्री ऋषभदेव सब मनुष्य, जंगल में आये और आग के आस -पास की घास उखाड़ डाली। धीरे-धीरे, जलती हुई लकड़ियों को इकट्ठा किया और एक बड़ा-सा आग का ढेर बना दिया। फिर भिजोकर अपनी मुट्ठी में रखे हुए अनाज को उस ढेर पर डाल दिया और बैठकर उसके पकने का मार्ग देखने लगे। किन्तु कहीं अनाज जैसी चीज़ इस तरह पकाई जाती है ? थोड़ी ही देर में, सब जलकर राख हो गया। उसमें से वापस क्या मिल सकता था? ___ मनुष्यों ने कहा-" मित्र ! यह तो सचमुच बहुत ही बुरा है । जितना भी दो, उतना सब खाजाता है और वापस कुछ भी नहीं देता !" सब, निराश होकर श्री ऋषभदेवजी के पास फिर आये और आग के स्वार्थीपन की शिकायत की। श्री ऋषभदेवजी, हाथी पर बैठे हुए देवता की तरह शोभायमान हो रहे थे। मनुष्यों की शिकायत सुनकर, उन्होंने कहा-" गीली-मिट्टी का एक पिण्डा बनाकर लाओ।" थोड़ी ही देर में गीली-मिट्टी का पिण्डा आ गया। श्री ऋषभदेवजी ने वह पिण्डा हाथी के सिर पर रखा और उससे एक सुन्दर तथा सुडौल बर्तन
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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