________________
१५
श्री ऋषभदेव
बनाया । यह बर्तन, मनुष्यों को बतलाकर कहाऐसे बर्तन बनाओ और उनमें अनाज पकाओ " । सबने, अब ऐसा ही करना प्रारम्भ किया ।
: ५ः
मनुष्य, वर्तनों में भोजन बनाकर खाने लगे । किन्तु अब यह प्रश्न पैदा हुआ, कि इन बर्तनों को रखा कहाँ जावे ? अब, मनुष्यों के शरीर भी पहले जैसे नहीं रह गये थे । रात-बिरात, जंगली जानवरों का हमला होने लगा, जिनसे रक्षा हो सकना कठिन प्रतीत हुआ ।
श्री ऋषभदेवजी ने विचारा - " अब मैं इन मनुष्यों को घर बनाना सिखलाऊँ, क्योंकि घर के बिना इनका काम नहीं चल सकता । " यों सोचकर, उन्होंने कुछ मनुष्यों को बुलाया और उन्हें घर बनाने की शिक्षा दी । इस के बाद, सब लोग घर बनाकर जंगल में रहने लगे ।
किन्तु, घर कहीं यों ही शोभा दे सकते थे ? उनमें चित्रों का होना आवश्यक प्रतीत हुआ । अतः श्री ऋषभदेवजी ने कुछ मनुष्यों को चित्र बनाना सिखलाया ।
थोड़े समय के बाद, मनुष्यों को नंगे घूमने में
-
लज्जा अनुभव होने लगी । उन्होंने सोचा – “ यदि