________________
श्री ऋषभदेव शुभ-विवाह से, सर्वत्र जय-जयकार होने लगा। सब लोग, आनन्द के साथ अपना समय व्यतीत करने लगे।
कुछ दिनों के बाद, सुमंगला के उदर से एक पुत्र तथा एक कन्या-रत्न ने जन्म लिया। इनके नाम हुए भरत तथा ब्राह्मी । इसी प्रकार सुनन्दा के भी एक पुत्र तथा एक पुत्री का जोड़ा हुआ, जिनके नाम हुए बाहुबली तथा सुन्दरी । सुमंगला के और भी अनेक पुत्र हुए।
अब तो, अमृत के समान फल भी कम हो गये और अमृत के समान मीठे-पानी भी न रहे। मनुष्य-समाज, पत्ते, फल-फूल तथा जंगल में उगे हुए अनाज खाकर दिन काटने लगा । किन्तु, यह अनाज हजम नहीं होता था। भूख लगने पर लोग अनाज खा तो लेते थे, किन्तु हजम न होने पर अन्त में दुःखी होते थे। इस कष्ट से दुःखी होकर, सब श्री ऋषभदेव के पास आये और उनसे बोले" श्रीमान् ! कोई उपाय बतलाइये, हम लोगों को खाया हुआ अनाज हजम नहीं होता।"
श्री ऋषभदेव ने कहा-अनाज को हाथ से