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श्री ऋषभदेव मृत्यु हो गई और उनकी छः पीढ़िये और भी बीत गई। सातवीं-पीढ़ी में हुए नाभिकुलकर। उनकी स्त्री का नाम था मरुदेवी । इन्हीं मरुदेवी की कोख से, सुन्दरता की खान तथा सोने के समान शरीरवाले पुत्र-रत्न ने जन्म लिया, जिनका नाम हुआ श्री ऋषभदेव । वे, लाड़-प्यार से पाले-पोसे जाकर बड़े होने लगे।
एक दिन, देवी के समान सुन्दर एक रमणी वन में घूम रही थी। उस बेचारी के न माता थी, न पिता । लोगों ने उसे भटकते देखा, तो कृपापूर्वक उसे श्री नाभिकुलकर के पास ले आये । उस सुन्दरी का नाम था सुनन्दा।
उसे देखकर नाभिकुलकर ने कहा-"कन्या अत्यन्त उत्तम है, इसका विवाह ऋषभदेव के साथ करूँगा । एक तो यह सुनन्दा है और दूसरी है सुमंगला । इन दोनों के साथ ऋषभदेव का विवाह उत्तम होगा।" - ऋषभदेव के विवाह की तय्यारियाँ होने लगीं। सारी व्यवस्था ठीक होजाने पर, श्री ऋषभदेव का सुनन्दा तथा सुमंगला के साथ विवाह हो गया। इस