Book Title: Hindi Granthavali
Author(s): Dhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
Publisher: Jyoti Karayalay

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Page 10
________________ श्री ऋषभदेव हाथी पर चढ़ता और जंगल में भ्रमण करता। इस मनुष्य का नाम था विमलवाहन । काल की महिमा विचित्र है। धीरे-धीरे फलफलादि कम होते गये, जिसके कारण मनुष्यों में आपस में लड़ाई होने लगी। एक कहता, कि यह मेरा वृक्ष है और दूसरा कहता, कि नहीं यह तो मेरा झाड़ है। एक कहता, कि इसके फल मैं लूं और दूसरा कहता, कि इन फलों पर मेरा अधिकार है। ऐसे समय में, उधर से विमलवाहन निकले । वे, हाथी पर बैठे थे और देवता की तरह सुन्दर मालूम होते थे । मनुष्य लड़ते-लड़ते उनके पास आये। मनुष्यों ने, विमलवाहन से प्रार्थना की-"पिताजी! हम लोगों का झगड़ा निबटाइये"। विमलवाहन ने उन लोगों का झगड़ा मिटा दिया और वृक्षों को सब में बाँटकर बतला दिया, कि “यह झाड़ तुम्हारा है और वह झाड़ उसका है । जाओ, आपस में लड़ो मत और खाओ-पीओ तथा आनन्द करो।" विमलवाहन, इन सब टोलियों यानी कुल के स्वामी माने गये, अतः वे ' कुलकर' कहलाये। इस बात को, वर्षों बीत गये । विमलवाहन की

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