Book Title: Hidayat Butparastiye Jain Author(s): Shantivijay Publisher: Unknown View full book textPage 9
________________ हिदायत बुतपरस्तिये जैन मैनपुस्तक लिखे गये, इतनेवर्सके लिखित जैनपुस्तक अगर आपलोगोके पास हो तो उनमे देखलिजिये, दुसरी दलील यह है कि जिस जिस प्राचीन और असली सिद्धांतमें नियुक्तिका मानना मना किया हो, उस उस जैनसिद्धांतके नाम जाहिर कीजिये, तीसरी दलील यह है कि जिसजिस नियुक्तिमें सावधाचार्योने अपनी तर्फसे अधिकार नहीं दर्जकिये हो ऐसी नियुक्ति कौनसी है बतलाइये याते उसपर अमल कियाजाय. .. __आगे मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें इस मजमूनको पेश करते है कि-नियुक्ति मंजुर करनेके बारेमें शांतिविजयजीने भगवतीसूत्र, अनुयोगद्वारसूत्र, समवायांगजीसूत्र, नंदीजीसूत्र, यह चारो सूत्रोके जो उक्त किताबमें पाठ दाखल किये है, वह सर्व पाठ मूर्तिपूजकोके आचार्योने अपने बनाये हुवे ग्रंथोको पूर्ण सहायताके वास्ते श्री जैनके असली सिद्धांतोमें नवीन बनाकर दाखल किये है, ऐसा निश्चय होगा, फिर नियुक्ति, नियुक्तिके कर्ता और नियुक्तिकी साक्षी देनेवाला सर्व खोटे ठहरेगें. . - (जवाब.) नियुक्ति-नियुक्तिके बनानेवाले और नियुक्तिकी साक्षी देनेवाले खोटे जब ठहर सकते है अगर कोई जैनकी द्वादशां गवानीके पुस्तकोसे नियुक्तिकों गलत साबीत करदेवे, नियुक्ति बनानेवाले चौदह पूर्वधारी जैनाचार्य भद्रबाहुस्वामी तीर्थकर महाबीरनिर्वाणके बाद (१७०) वर्स पीछे मौजूद थे, जिनको आज (२२७०) वर्स हुवे, चौदह पूर्वधारीके वचन प्रमाणीक होते है इससे साबीत हुवा-नियुक्ति और नियुक्ति बनानेवाले अप्रमाणिक नही, नियुक्तिकी साक्षी देनेवाले भी अप्रमाणिक इसलिये नही कि-जैनके एकादशादि अंगशास्त्र.भगवती और समवायांग वगेरा सूत्रोमें नियुक्तिका मानना मंजुर रखा है. मूर्तिपूजक जैनाचार्योने अगर नवीनपाठ बनाकर दाखल किये है तो ऐसे प्राचीन सूत्रPage Navigation
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