Book Title: Hidayat Butparastiye Jain Author(s): Shantivijay Publisher: Unknown View full book textPage 8
________________ हिदायत चुतपरस्तिये जैन आगे मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें बयान करते है, शयंभवमूरिका बनाया हुवा दशवकालिकसूत्र और शामाचार्यका बनाया हुवा पनवणासूत्र क्यों मंजुर रखा गया ? यहांपे सहज सवाल पैदा होनेका वख्त है कि-अगर ऊक्त दोनो सूत्रोके नाम श्रीजैनके प्राचीन असली सिद्धांतोमें दर्ज होवेगे तो शांतिविजयजीका कथन साफ खोटा है ऐसा निश्चय होगा. . (जवाब.) शांतिविजयजीका कथन खोटा जब ठहरसकता है कि-अगर मुनि कुंदनमलजी दशवकालिकसूत्रको और प्रज्ञापना सूत्रकों गणधररचित साबीत करदेवे, आचार्योके बनाये हुवे दशवैकालिक और प्रज्ञापनासूत्रको मंजुर रखते हो तो फिर आचार्योंकी बनाइ हुई टीका, भाष्य, नियुक्ति और चूर्णि क्यों नहीं मंजुर रखना ? इसका कोई जवाब देवे, अगर कहाजाय नंदीसूत्रमें दशवैकालिक और प्रज्ञापनासूत्रके नाम लिखे है इसलिये हम मानते है, तो जवाबमें मालुम हो, नंदीसूत्रमें पेतालिसआगम वगेराके नाम भी लिखे है ऊनकोभी मानना चाहिये. फिर मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें तेहरीर करते है, इसके अलावा शांतिविजयजी नियुक्ति माननेके वास्ते कोशीश करते है, मगर नियुक्तिमें जो जो अधिकार सावधाचार्योंने दर्ज किये है वह सर्व अधिकार श्रीजैनके एकादशांगादि ताडपत्रों के लिखित प्राचीन असली सिद्धांत अंगीकार करेंगे, वह नियुक्ति माननेमें आवेगी. — (जवाब.) ताडपत्रपर लिखित जैनके एकादशांगादि प्राचीन सिद्धांत मंगवाकर देख लिजिये, उनमें नियुक्तिका मानना लिखा है या नहीं ? ताडपत्रपर लिखित जैनके प्राचीन सिद्धांतके बारेमें हकीकत सुनिये ! तीर्थंकर महावीर निर्वाणके बाद (९८०) वर्स पीछे जमाने देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणके वल्लभी नगरीमें ताडपत्रोपरPage Navigation
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