Book Title: Hidayat Butparastiye Jain
Author(s): Shantivijay
Publisher: Unknown

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Page 30
________________ ३० हिदायत बुतपरस्तिये जैन, अपने शरीर पर लगनेसें पापरूपीरज दुर होगी, इन इन सबोसे तीर्थों की जियारत और मूर्तिपूजा फायदेमंद चीज साबीत होती है. अगर कोई इस दलिलकों पेश करे कि - तीर्थोंमें गये और मनःपरिणाम नही सुधरे तो क्या फायदा हुवा ? ( जबाब . ) गुरुमहाराजको वंदना करने गये और मनःपरिणाम नही सुधरे तो बतलाइये ! क्या ! फायदा हुवा ? दरअसल ! देवगुरुधर्मकी जगह मनःपरिणाम सुधरनेका स्थान है, इतने पर भी किसीके मनःपरिणाम नही सुधरे तो ऊस जीवके कर्मोका दोष है, यूं तो दीक्षा लेनेपरभी किसीके मनःपरिणाम नही सुधरे तो इसमे कोई क्या करे, उस जीवके पापकर्मका ऊदय जानना, तीर्थंकरदेवकी वानी सुनकर अभव्यजीवके मनःपरिणाम नही सुधरे तो इसमें तीर्थंकरकी वानीका क्या दोष? ऊस जीवके अशुभकर्मका दोष है, ऐसा जानना. किताब- हिदायत बुतपरस्तिये जैनका लिखान खतम होता है, मुनि कुंदनमलजीके विवेचनपत्रका जवाबभी इसमें देदिया है, आपलोग पढे, और अपने दोस्तोकोंभी दिखलावे, में ऊमेद करता हुँ - सबकों यह किताब पसंद होगी और मूर्तिपूजाकी संबुतीपर ऊमदा दलिले मीलेगी. व कल्म- जैन श्वेतांबर धर्मोपदेष्टा विद्यासागर न्यायरत्न महाराज शांतिविजयजी, मुकाम - पाचोरा - खानदेश.

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