Book Title: Hidayat Butparastiye Jain
Author(s): Shantivijay
Publisher: Unknown

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Page 10
________________ १० हिदायत बुतपरस्तिये जैन. सिद्धांत निकालो कि-जो देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणके बख्तके लिखे हुवे हो और उसमें देखो कि-नियुक्तिका मानना लिखा है या नहीं ? अगर लिखा है तो नियुक्तिकी साक्षी देनेवाले भी अपमाणीक नही ठहर सकते. ___ फिर मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें लिखते है किअतएव शांतिविजयजीने नियुक्तिके सर्व अधिकार श्रीजैनके एकादशांगादि ताडपत्रपर लिखित प्राचीन असली सिद्धांतोंसें रजुआमसभामें करके दिखलाना चाहिये. . . (जवाब.) शांतिविजयजीने नियुक्ति माननेके पाठ-किताब सनम परस्तिये जैनमें छपवाकर दिखला दिये है. छपवानेवालोने मजकुर किताब छपवाकर शहर बशहर भेज दिइ है, जिसको आज करीब चारवर्स होगये और पढनेवालोने पढीभी होगी, जिनको शक हो-ताडपत्रपर लिखे हुवे पुराने जैनसिद्धांत हिंदके जिस जिस शहरमें मौजूद हो-मंगवाकर देखे, ताडपत्रपर लिखे हुवे पुराने जैनपुस्तक इस वख्त जेशलमेर, पाटन, अहमदावाद वगेरा शहरोमें मौजूद है, जिस महाशयको जिस बातका शक हो अपना शक मिटानेकी कोशिश करे, अगर कहा जाय. जेशलमेर, पाटन और अहमदावाद वगेरा शहरोमें जो ताडपत्रपर लिखे हुवे जैनके प्राचीन पुस्तक होगें वे मूर्तिपूजक जैनोके होगें. जवाबमें मालुम हो अगर मूर्तिपूजकजैनोके लिखीत प्राचीन जैनपुस्तक मंजुर नही तो मूर्तिनिषेधक जैनोके लिखीत प्राचीन जैनपुस्तक देखिये, मगर देवर्दिगणिं क्षमाश्रमणके वख्तके लिखे हुवे देखना चाहिये क्योंकि ऊनहीके वख्तमें कंठाग्रज्ञान पुस्तकाकार लिखा गया है. .. ___कइ शिलालेख जमीनसे निकले हुवे ऐसे है, जिसके देखनेसें जिनमंदिर और जिनमूर्तिकी साबीती मिलती है, अगर कहा जाय तीर्थकर देव मुक्त हुवेबाद अरूपी है, फिर मूर्ति क्यों बनाना?

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