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हिदायत बुतपरस्तिये जैन.
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महानिशीथसूत्र काबिल मंजुर करनेके है. बत्तीससूत्रही मानना और दुसरे नही मानना यह किसी जैनागममें नही लिखा, स्थानकवासी मजहब के श्रावकलोग अपने धर्मगुरुवोकों वंदना करने आनेवाले श्रावकोकों रसोई जिमावे और स्वधर्मी जानकर भक्ति करे तो बतलाइये ! पुन्य होगा या पाप ! अगर कहा जाय पुन्य होगा, तो फिर स्वधर्मी वात्सल्य करनेमें पुन्य क्यों नही ? अगर कहा जाय दया सुखकी वेलडी है, और हिंसा दुखकी वेलडी है, तो जवाब में मालुम हो, जैनमुनि विहार करते वख्त जब नदी ऊतरेगे और ऊनके पांवोसें जो पानीके जीव मरेगें यह दयामें समजना या हिंसामे ? अगर कहा जाय ! नदी ऊतरना ईरादे धर्मके तीर्थंकरोका हुकम है, तो फिर जिनमंदिर बनाना तीर्थयात्रा जाना यह ईरादे धर्मके हुकम नहीं है क्या ? देखिये ! ईरादेकी सडक कैसी मजबूत है कि - बिना इसके काम नही चलता, जैनमुनि जब आहार लेनेकों गृहस्थोके घर जायगें तो ऊनके शरीर से जो वायुकाय वगेरा जीवोकी हिंसा होगी, यह दयामें समजना या किसमे ? दीक्षाके जलसे में बाजे बजवाना, जुलुस निकालना यह दयामे समजना या किसमे ? स्थानक बनानेमे पृथ्वी, पानी और अग्निकायके जीवोंकी हिंसा होगी यह दयामें समजना या किसमे ? इसका कोई महाशय जवाब देवे. दरअसल ! जहां इरादा शुभ है वहां भावहिंसा नही, और विना भावहिंसा के पाप नही, यह सिधी सडक है.
अगर कोई इस दलिलकों पेश करे कि - पथरकी गौ जैसे दुध नही देती, वैसे पथरकी मूर्ति मुक्ति कैसे देयगी ?
( जवाब . ) जैसे कागज स्याहीके बने हुवे जडपुस्तक बोलते नही तो मुक्ति कैसे देगे ? अगर कहा जाय पुस्तक के बांचने से ज्ञान होगा तो जवाब में मालुम हो, इसीतरह मूर्त्तिके दर्शन करनेसे