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जन.
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हिदायत बुतपरस्तिये जैन. लिखी हो, उसका ऊपदेश करना जैनमनिका फर्ज है. तीर्थकरोके समवसरणमें सचित फुल बीछाये जाते थे. खुद तीर्थंकर महाराज रत्नसिंहासनपर बेठते थे, अपने ज्ञानसे वे जानते थे कि समवसरणमें बैठते वख्त फुलोका स्पर्श जैनमुनियोकों होगा, फिर फुल बिछानेकी मनाइ तीर्थंकरोने क्यों नही किई ? अगर कहा जाय वे फुल अचित थे तो ऐसा पाठ किसी जैनआगमका कोई जाहिर करे. __ अगर कोई इस सवालकों पेंश करे कि-जैनमुनिकों मुहपति हाथमें रखना किस जैनशास्त्रमें लिखा है.
(जवाब.) ओघनियुक्तिशास्त्रमें लिखा है कि मुहपति हायमें रखना. मुखपर बांधना किसी जैनशास्त्रमें नहीं लिखा, अगर कहा है तो कोई पाठ बतलावे, मुहपत्ति मुखपर बांधना वायुकायके जीवोकी हिफाजतके लिये नही होसकता. मुखमेसे निकलते हुवे भाषा वर्गणाके पुदगल चारस्पर्शी होते है और वायुकायके जीवोंका शरीर आठस्पर्शी होता है. चारस्पर्शी आठस्पर्शीकी घात नही करसकते. अगर. कहा जाय भाषावर्गणाके पुदगल मुखसे बहार निकले बाद आठस्पर्शी होजायगे और फिर वायुकायके जीवोंकी घात करेगें, जवाबमें मालुम हो मुहपत्ति बांधनेसेभी भाषावर्गणाके पुदगल मुखसे बहार निकले बाद आठस्पर्शी होजायगें और वायुकायके जीवोकी हिंसा करेंगे तो फिर बतलाइये ! मुहपत्ति मुखपर बांधनेसे क्या! फायदा हुवा ? आचारांगसूत्रके दुसरे श्रुतस्कंधमें दुसरे अध्ययनके तीसरे उदेशेमें पाठ है कि
से भिखुवा भिखुणीवा उसासमाणेवा निसासमाणेवा कासमाणेवा छीयमाणेवा जंभायमाणेवा उढवाएवा वायषिसग्गेवा करेमाणे पूवामेव आसयंवा पोसयंवा पाणिणा परिपेहित्ता ततो संजयामेव ओसासेजा जाव वायणिसग्गेवा करेजा.