Book Title: Haribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya Author(s): Anekantlatashreeji Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trsut View full book textPage 5
________________ मिादरमर्पण a ध्यानमूलं गुरोर्मूर्ति, पूजामूलं गुरोर्पदं / मंत्रमूलं गुरोर्वाक्य, मोनमूलं गुरोर्कपा // जिनकी कृपा का दिव्याशीष सदैव मुझे मिलता रहा ऐसे परमपूज्य गुरुदेव सुविशाल गच्छाधिपति शासन सम्राट राष्ट्रसंत वर्तमानाचार्यदेवेश श्रीमद्विजय जयन्तसेन सूरिश्वरजी म.सा. के आचार्यपद पाटोत्सव के रजत महोत्सव पर सादर समर्पित...... साहित्य सर्जक सत्य अन्वेषक तत्त्व शोधक आप हैं। तीर्थ प्रभावक आत्म गवेषक भव्य उद्धारक आप हैं। रत्नत्रयी साधक ज्ञान बोधक तत्त्व देशक आप हैं। अर्पण गुरु के चरण में 'अनेकान्त' का आलाप है। ओ ! रत्नत्रयी रंजन, समकित सम्यक् ओ शुभम् ! प्राची प्रस्थित पद्मम्, प्रज्ञा प्रचूर प्रवरम्। वाणी तव कल्याणी, जन-मन आतम रंजन। 'अनेकान्त' करे अर्पण, हो सार्थक समर्पण !!Page Navigation
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