Book Title: Gyanodaya Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada View full book textPage 5
________________ सम्पादकीय... 'परोपकाराय सतां विभूतयः' सज्जनों की विभूतियों का उपयोग भी परोपकार के लिए होता है। भारतभूमि में सदियों से वीतरागी संतों ने वीतरागता पूर्वक, वीतराग भावना का पोषण किया है। इसी परम्परा में जैनागम की मूल आम्नाय को धरोहर के रूप में सौंपने वाले वीतरागी गुरुवर आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण-तरण ने भेद विज्ञान को वास्तविक ज्ञान और वीतरागता को वास्तविक चारित्र बताया है। 'दिप्त दिप्ति तं दिस्ट सम, दिप्त दिस्ट समभेउ।' अर्थात प्रतिसमय प्रकाशित शद्धात्म दर्शन से आत्मा, परमात्मा बन जाता है। श्री कुंदकुंदाचार्य देव ने कहा है- 'किं बहुणा भणिएणं जे सिद्धा णरवरा गए काले। सिज्झिहहि जे वि भविया, तं जाणह सम्ममाहप्पं ।' आचार्य श्री अमृतचंद्र देव भी यही समझाते हैं कि 'भेद विज्ञानतः सिद्धा सिद्धा ये किल केचन।' वास्तव में एक आत्मा ही उपादेय है, एकमात्र वही ध्येय है, ज्ञेय है, आराध्य है। यही सत्य है। अमूल्य समय रहते हुए आत्मपद प्राप्ति की इसी सीख को पंडित प्रवर दौलतराम जी कहते हैं- 'यह राग आग दहै सदा, तातें समामृत सेइये। चिर भजे विषय कषाय अब तो त्याग निज पद बेइये। कहा रच्यो पर पद में न तेरो, पद यहै क्यों दुख सहै। अब दौल ! होउ सुखी स्वपद रचि, दाँवमत चूको यहै। विद्वानों का यह मत-एकमत है। अतः बा. ब्र. श्री बसन्त जी भी कहते हैं- 'निज को स्वयं निज जान लो, पर को पराया मान लो। यह भेदज्ञान जहान में, निज धर्म है पहिचान लो।' सत्य की प्राप्ति एक व्यक्तिगत प्रक्रिया है और सत्य का प्रचार सामाजिक प्रक्रिया। सत्य की प्राप्ति के लिए अपने में सिमटना आवश्यक है और सत्य के प्रचार के लिए जन-जन तक पहुँचना। अध्यात्म रत्न बा. ब्र.श्री बसन्त जी ने जब इस सत्य को जन-जन तक पहुँचाने का उद्देश्य बनाया तो वर्षों के विचार मंथन से श्री तारण-तरण मुक्त महाविद्यालय धर्म नगरी छिंदवाड़ा में साकार हुआ है। मुक्त महाविद्यालय की पत्राचार प्रणाली द्वारा घरों-घर ज्ञान-प्रभा निष्णात होगी। ज्ञानयज्ञ के इस पुनीत लक्ष्य की पूर्ति हेतु यह प्रवेश पाठ्यक्रम 'ज्ञानोदय' संशोधित द्वितीय संस्करण आपके हाथों में पुस्तकाकार समर्पित है। पंचवर्षीय पाठ्यक्रम के वटवृक्ष में आचार्य श्री जिन तारण स्वामी जी द्वारा सृजित चौदह ग्रंथों सहित छहढाला, श्री जैन सिद्धांत प्रवेशिका, द्रव्य संग्रह, तत्वार्थ सूत्र, अध्यात्म अमृत कलश, गुणस्थान परिचय आदि की शाखाएँ हैं। देव गुरु शास्त्र पूजा, मंदिर विधि, प्रतिष्ठा विधि, बारह भावनाएँ, तारण समाज साधक परिचय इस वृक्ष के सुरभित पत्र पुष्प हैं। मूल में हमारी श्रद्धा का सिंचन है, जो वृहदाकार सम्यक्ज्ञान, चारित्र को परिपुष्ट करेगा। 'ज्ञानोदय' का प्रथम अध्याय जैनागम के सिद्धांतों और अखिल भारतीय तारण तरण दिगं. जैन समाज की मूल आम्नाय का परिचय है। ज्ञान विज्ञान भाग एक एवं दो पूर्व से ही तारण तरण दिगं. जैन पाठशालाओं के सतत् पाठ्यक्रम में सम्मिलित है। इसकी प्रश्नोत्तर व संवाद शैली हृदयग्राही है जो विद्यार्थी को तर्कनिष्ठ बनाती है। ज्ञानोदय का दूसरा अध्याय विचारमत का प्रसिद्ध ग्रंथ श्री मालारोहण जी है। श्रीमद् तारण स्वामी जी ने बत्तीस गाथाओं में जिनवर कथित आत्मस्वरूप और सम्यकदर्शन की महिमा को समवशरण की दिव्य देशना के रूप में वर्णित किया है। श्री महावीरPage Navigation
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