Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

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Page 8
________________ * धोलका में स्थायी निवास ५१ * नागकेतु * युद्ध-कौशल ५२ * चैत्यपरिपाटी * वस्तुपाल की संस्कृत रसिकता ५२ * पाँचम की चौथ * साढ़े तेरह संघ निकालोगे ५३ गणधरवादः- ८८-९६ * प्रभु के लिए पाषाण प्राप्त किया ५४ * वेद वाक्य की भूमिका * शत्रुजय का १५वाँ उद्धार ५५ * प्रभु का उत्तर * सोलहवाँ उद्धार कर्माशा का ५८* प्रत्यक्ष से आत्मा है ९४ * स्वदृष्टि से देखा गया अद्भुत सुदाक्षिण्यता:- ९७-१०२ अभिषेक और चमत्कार ६०* धर्म योग्य श्रावक का आठवाँ गुण ९७ पर्युषणा तृतीय दिनः- ६३-७३ * कामवासना के पाप में ९८ * देदाशा ६३ * बाल-संस्कारों के लिए * श्री स्तंभन पार्श्वनाथ की महिमा ६४| क्या करोगे? १०२ * पेथड़ का परिग्रह-परिमाण ६७ स्वार्थी संसार:- १०३-१०७ * माण्डवगढ़ में पेथड़ ६८* बालमुनि की दाक्षिण्यता १०४ . झांझण का बुद्धि कौशल्य ७० * बहुत गई थोड़ी रही १०५ * पेथड़शाह की साधर्मिक भक्ति ७१ लज्जाः १०८-११३ * भेंट से ब्रह्मचर्य स्वीकार ७२ धर्म योग्य श्रावक का नौवाँ गुण १०८ * जगडुशाह की साधर्मिक भक्ति ७३ * धर्म के मूल में लज्जा १०८ क्षमापना: ७४-८२ * चण्डरुद्राचार्य और शिष्य ११० ७४ दया: ११४-१२८ * चन्दनबाला-मृगावती ७५ * दया की चाबी राजीनामा ११४ * उपाध्याय श्रीधर्मसागरजी महाराज ७९ खणं जाणाहि पंडिया ८३-८७ * सम्पत्ति दैवी या आसुरी ११६ * अट्ठम तप की आराधना ८३ * धर्म रुचि अणगार ११९ * तप उत्तम औषध ८४ * खामणा ११४ तपाराधनाः

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