Book Title: Guru Vani Part 02
Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar
Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust

Previous | Next

Page 7
________________ (अनुक्रमणिका) * * * अक्रूरताः १-८* माता-पिता की प्रतिष्ठा बिना * दौड़त दौड़त दौड़त दौड़ियो १] प्रभु की प्रतिष्ठा कैसी? २० * वक्तृत्व की अपेक्षा श्रोतृत्व * माँ देखती है आते को और पत्नी महान् कला है २ देखती है लाते को २२ * धर्म के साथ सम्बन्ध कैसा हो? २ पर्युषणा-प्रथम दिन:- २४-४१ * अक्रूरता _३ * पर्व का स्थान * भतीजे द्वारा काका की परीक्षा ४ पर्युषण का शब्दार्थ * धर्म गुण प्रधान है ६ पर्युषणा कल्प * कुन्तल रानी ६* तीन विभाग * कषाय रहित धर्म का परिणाम ७* अमारि प्रवर्तन-युगल जोड़ी २६ पापभीरुताः ९-१३ * पूज्य विजयहीरसूरिजी महाराज * सामान्य, विशेष का निर्माता है ९ गुरुभक्ति * पापभीरु ९* चम्पा श्राविका * व्यापार कब धर्म बनता है? १० * गंधार से दिल्ली की ओर विहार । * पापभीरु सुलस ११- दिल्ली में प्रवेशोत्सव और सम्राट प्रभु के साथ चित्त जोड़ोः-१४-१८ | से मिलन * पूर्वजन्मों के संस्कार १४* सेन को सवाई पदवी * प्रभु का स्मरण ही प्रभु-शरण है १५ * ऊना में अन्तिम समय * प्रभु का नाम स्मरण सस्ता होने पर्युषणा-द्वितीय दिन:- ४२पर भी सक्षम है १६ * साधर्मिक वात्सल्य * तन आसन पर, मन कहाँ? १७* मोटा वस्त्र अशठताः १९-२३ * उदो मारवाड़ी * भगवान् मल्लिनाथ १९ * शत्रुञ्जय का १४वाँ उद्धार * दम्भ का बोलबाला १९ * वस्तुपाल - तेजपाल

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 142