Book Title: Gita Darshan Part 06 Author(s): Osho Rajnish Publisher: Rebel Publishing House Puna View full book textPage 9
________________ भूमिका समग्र जीवन-दर्शन बनाम 'गीता-दर्शन' जीवन की सार्थकता के लिए तत्वद्रष्टा ओशो द्वारा तीन सूत्र प्रस्तुत किए जाते हैं : वर्तमान में जीना, अकेले जीना और सहजता के साथ जीना। यदि बहुत बड़ी-बड़ी आध्यात्मिक-दार्शनिक सिद्धांतों की बातों को छोड़ दें तो व्यावहारिक दृष्टि से ऐसा लगता है कि श्रीमद्भागवत् गीता को अपनी विशाल प्रवचन-माला, 'गीता-दर्शन' के द्वारा वे श्रोताओं और पाठकों के भीतर कुल मिलाकर इन्हीं तीन सूत्रों को गहराई के साथ प्रतिष्ठित करने का प्रयास करते हैं। कृष्ण-शरणागत अर्जुन जैसी ही समस्या आज के दिग्मूढ़-किंकर्तव्यविमूढ़ मनुष्य की है। वह अपने शुद्ध वर्तमान में अकेले सहजता के साथ न जीकर भूत-भविष्य की नाना प्रकार की प्रतिबद्धताओं-अवधारणाओं की भीड़ के साथ जीवन के नाम पर पागलपन को जीता है। वह अर्जुन की तरह भयभीत है, द्वंद्वग्रस्त है और असत्य को सत्य समझ मोहमूढ़ बना हुआ है। गीता जैसे अप्रतिम अध्यात्म शास्त्र-ग्रंथ के अवतरण के लिए वह पूर्ण रूप से उपयुक्त पात्र है। दो सेनाओं, दो कुलों और दो विचारधाराओं-सत्यासत्य तथा धर्माधर्म के द्वंद्व में फंसे अर्जुन को कृष्ण ने गीता-ज्ञान प्रदान कर मोहमुक्त करने के साथ उसकी स्वधर्म-विमुखता का निवारण किया। - अब सवाल यह है कि 'गीता-दर्शन' की नई व्याख्याओं द्वारा क्या ओशो भी अपने पाठकों और श्रोताओं को अर्जुन की भांति मोहमुक्त करना चाहते हैं? मुझे लगता है कि ऐसा नहीं है। स्वधर्म-निरत और मोहमुक्त करने के पूर्व 'गीता-दर्शन' की अवतारणा आज के मनुष्य को अर्जुन बनाने में जुटी हुई है। अर्जुन पूर्ण रूप से मनुष्य है। वह अभीष्ट ज्ञान का उपयुक्त पात्र है। ___ अनेकानेक आंतरिक और बाह्य कारणों से आधुनिक काल का मनुष्य मानवता के लक्ष्यों, उपकरणों और विभूतियों से शून्य होकर टुकड़े-टुकड़ें हो गया है। वह या तो निर्जीव यंत्र हो गया है या सजीव राजनीति हो गया है। वह सत्य, धर्म अथवा 'मार्ग' के लिए हृदय से कहां आकुल होता है? ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि वह पहले मनुष्य बने और उसके भीतर अध्यात्म-ज्ञान की जमीन तैयार हो। ओशो ने 'गीता-दर्शन' के द्वारा यही कार्य नए सिरे से किया है और पुराने ज्ञान-दान के लिए नई तकनीक का प्रयोग किया है। तो, कैसी है वह नई तकनीक, नया शिल्प, नई विश्लेषण पद्धति और मौलिक प्रवचन कला? इस पर ध्यान जाना चाहिए। 'गीता-दर्शन' के प्रत्येक अध्याय के आरंभ में दो-तीन या चार करके क्रम से अर्थ-सहित श्लोक प्रस्तुत किए जाते हैं। इसके बाद प्रश्नोत्तर श्रृंखला का आरंभ होता है। प्रश्न प्रायः वर्तमान संदर्भ से असंबद्ध प्रतीत होते हैं परंतु उनके उत्तरों में जो विश्लेषण होता है वह तथ्य को तह से उठाकर अंत में वहां पहुंचा देता है जहां गुत्थियां खुल गई होती हैं और अभीष्ट समाधान मिल गया होता है। इन आधुनिक जीवन से जुड़े सुकराती प्रश्न-कोणों से टकरा-टकरा कर जो समाधान निकलते-निकलते भी रह जाते हैं उन्हें शब्द विशेष का कोई नूतन, मौलिक और वैज्ञानिक अर्थ देकर सिद्ध कर दिया जाता है। जैसे कृष्ण का वचन है कि अत्यंत भक्ति में निरत भक्तों का मैं शीघ्र उद्धार कर देता हूं। बारहवें अध्याय के तीसरे प्रवचन में इस स्थल को आधुनिक व्यक्ति-मन में खोलकर बैठाने के लिए ओशो ने वैज्ञानिक नियमों का सहारा लेकर जो अर्थ-चमत्कार उत्पन्न किया है वह यथास्थान देखा जा सकता है। विद्वानों ने कृष्ण शब्द का अनेक प्रकार से अर्थ किया है परंतु यहां ओशो का अर्थ बोध के सर्वथा नए आयाम को लेकर प्रस्तुत होता है। उनका कहना है, 'कृष्ण का मतलब है : नियम, शाश्वत धर्म। जैसे ही आप अपने को छोड़ देते हैं, वह नियम काम करने लगता है।' ___ इस प्रकार ओशो अध्यात्म और दर्शन की शास्त्रीय बहस को आधुनिक मन के लिए सहज स्पर्श-क्षम बना कर उसकी मूर्छा तोड़ते हैं, उसे जगाते हैं। यह जगना जानने की अपेक्षा महत्वपूर्ण होता है। गीता की अन्य विद्वत्तापूर्ण व्याख्याएं जहां व्यक्ति को जनाती हैं वहांPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 432