Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 15
________________ है / समस्त परेशानियों का विसर्जन-कर्ताभाव गिरते ही / प्रभु जो कराए। परमात्मा का प्रिय कौन ... 103 निराकार की साधना इतनी कठिन क्यों है? / मन से निराकार और असीम का खयाल भी संभव नहीं / मन का भी हमें पूरा पता नहीं है / मन दूसरे के बिना जी नहीं सकता / कठिनाई मन की है / मन को छोड़ सकें तो निराकार मार्ग है / साकार का मार्ग क्रमिक है / साकार के मार्ग पर अहंकार को कठिनाई / सही मार्ग से बचने की हमारी तरकीबें / जीवित व्यक्ति को भगवान मानना कठिन / सामर्थ्य के अनुसार मार्ग चुन लें / चिंतन में शक्ति व समय न गंवाएं / हमारी चिंताएं-कि कृष्ण, बुद्ध, जीसस भगवान हैं या नहीं/ क्या आप भगवान हैं? / क्या दुनिया आपने ही बनाई है? / सोचते ही मत रहें-चलें/चैतन्य, मीरा, कबीर, रैदास, नरसी आदि अनेक भक्तों ने भक्ति का व्यापक प्रचार किया, फिर भी भक्ति-भाव से यह देश रिक्त क्यों है? / धर्म प्रचार से नहीं मिलता / अनुभव हस्तांतरित नहीं होते / अपना दीया जलाना सीखना / संतों की बातों पर भरोसा कठिन / जीवित कबीर से पंडितों का बचना; मृत कबीर पर विश्वविद्यालय से डाक्टरेट लेना / संतों से बचना-सूली देकर या पूजा करके / अध्यात्म सबसे बड़ा श्रम है / मुर्दा संतों से सुविधाएं / जिंदा गुरु का हमेशा विरोध / जिंदा गुरु खोजें / जिंदा गुरु हमेशा उपलब्ध हैं / बदलने की कीमिया सीखें-बातें नहीं / शिष्य बनना कठिन है | दूसरों को सिखाने का मजा / भाग्य में परमात्मा मिलना होगा तो मिलेगा / तो खोजें क्यों? / भाग्य का स्वीकार-सभी बातों में / फिर चुनें ही मत / समग्र स्वीकार से समर्पण घटित / भाग्य-परमात्मा को पाने की एक विधि / स्वीकार से शांति / ज्योतिष में रुचि-अनास्था सूचक / एक संस्मरणः ज्योतिषी की मुसीबत / क्या है उसे प्रिय / ग्रहण की पात्रता / अवरोध पैदा न करना / राग-द्वेष के रहते शांति नहीं / अहं-केंद्रित जीवन / स्वार्थी अर्थात स्वयं में बंद / हम निष्प्रयोजन मुस्कुराते भी नहीं / जीवन का उत्सव-अकारण / हेतुरहित प्रेम / प्रेम साधन नहीं-आनंद हो / ममता प्रेम नहीं है / रुक गया प्रेम-ममता है / प्रेम हो–पर ममता न हो / प्रेम को फैलने दें / प्रेम बढ़ेगा-तो अहंकार घटेगा / सुख-दुख-हमेशा साथ-साथ / ठीक जीवन अर्थात प्रभु-उन्मुख जीवन। उद्वेगरहित अहंशून्य भक्त ... 121 प्रभु प्राप्ति का मार्ग इतना कठिन क्यों है? / रास्ता बिलकुल सुगम है / व्यक्ति जटिल है / स्वयं से गुजर कर मार्ग मिलता है | आप ही हैं मार्ग/ गलत दिशा में खोजने के कारण कठिनाई / जाने-अनजाने सब की खोज-परमात्मा के लिए / भीतर मुड़ें-परमात्मा वहां सदा से खड़ा है / परमात्मा से दूरी-वास्तविक नहीं / सरल रास्ता न खोजें—सरल बनें / जटिलता की गांठे खोलें / राबिया का सुई खोजना / गलत दिशा-परमात्मा को बाहर खोजना / इंद्रियां हैं बहिर्गामी / इंद्रियों की जरूरत-संसार में / विज्ञान है-इंद्रियों का जगत / धर्म है-अतींद्रिय जगत / इंद्रियों के द्वार बंद कर भीतर डूब जाना / चेतना की दो क्षमताएं-स्मरण और विस्मरण / संसार में होना–व्यक्ति का अपना निर्णय है / दुख का बोधः मुक्ति का निर्णय / बुद्ध-सारथि-संवाद / महत्वाकांक्षा और शांति साथ-साथ असंभव / दो नावों पर एक साथ सवारी / धन पर पकड़ छोड़ दें, तो संसार कैसे चलेगा? / जरूरत और पकड़ का फर्क / धन की पकड़ पागलपन है / अमीरों की गरीबी / धन साधन हो–साध्य नहीं / सब इच्छाएं छोड़नी हैं, तो जीवन का लक्ष्य क्या है? / जीवन की धन्यता—इच्छा-शून्यता में / इच्छाओं को पकने देना / अनुभवों की आग / क्रोध का पूरा साक्षात्कार / स्वानुभव से क्रांति / गुरजिएफ के प्रयोग-साधकों पर / क्या शांति से संसार की चीजें भी मिल सकती हैं? / संसार के लिए भाग-दौड़ जरूरी / राजनीति–एक विक्षिप्तता / आत्मा गंवा कर सफलता/संसार की दिशा-बाहर / परमात्मा की दिशा-भीतर / विश्राम, अप्रयत्न-परमात्मा के लिए जरूरी/संसार

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