Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 14
________________ अहंकार घाव है...67 क्या संसारी ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता? / भ्रांत धारणा / भागना नहीं रुकना है / संसार से भागना असंभव / आप ही हैं रोग / संसार है-जागने की परिस्थिति / परिस्थिति नहीं-मनःस्थिति बदलना / वासना के बीज मन के भीतर / रूपांतरण की कला-धर्म / बेहोश कृत्य पाप है, तो भाव की बेहोशी का क्या अर्थ है? / भाव की बेहोशी में भीतर का जागरण / योग और तंत्र के जागने के प्रयोग / धर्म भी प्रयोगात्मक है / प्रभु-समर्पित हो जाने के बाद भी उठने वाले सुख-दुख का क्या करें? / समर्पण बेशर्त होता है / पूरा राजीपन / स्वीकार से अतिक्रमण / आनंद-सुख-दुख के पार/ जैसी उसकी मर्जी / अहंकार के साथ ही सख-दुख का खो जाना / आपकी बातें समझने के लिए बुद्धि को प्राथमिकता देनी या भाव को? / बुद्धि से समझना-भाव से पचाना / ज्ञान की अपच / अनुभव-तर्क अतीत है / बुद्धि द्वार बन जाए-प्रयोग के लिए / मुल्ला और तर्क / क्या निरहंकारी होकर भी सफल हुआ जा सकता है? / अहंकार के लक्षण-सफलता, महत्वाकांक्षा / सफलता के आंतरिक आयाम / सफलता-असफलता की व्यर्थता का बोध / अहंकार है–धारा के विपरीत संघर्ष / निरहंकार है-प्रतियोगिता के बाहर हट जाना / अहंकार के सूक्ष्म खेल / तुलना से मुक्ति / स्वयं का स्वीकार / अहंकार घाव है / अहंशून्यता और प्रभुप्रसाद / बिना विधि के सीधे भाव में डूबना / बच्चों जैसा सरल भाव / विक्षिप्त मन / भक्त का सीधे डूबना / भाव न हो, तो योगाभ्यास जरूरी / पहले अभ्यास-फिर तन्मयता / तीन मार्ग-भक्ति, योग और कर्म / श्रेष्ठतम मार्ग-प्रेम / धन-ग्रसित व्यक्ति प्रेमी नहीं हो सकता / कर्म-योग-आखिरी मार्ग / पहले दो से असफल व्यक्ति ही तीसरे में सफल / कर्म-योग अर्थात प्रभु अर्पित कर्म / सब वही करता है। कर्म-योग की कसौटी... 85 ध्यान और भक्ति क्या साथ-साथ संभव नहीं हैं? / रुचि और रुझान के अनुकूल मार्ग चुनना / मार्ग एकांगी-मंजिल पूर्ण / मीरा और बुद्ध के विपरीत मार्ग / स्त्री के लिए सहज-भरना / पुरुष के लिए सहज-खाली हो जाना / अपने ही मार्ग का आग्रह / मार्ग अर्थात मिटने की प्रक्रिया / जन्म से धर्म का निश्चय न हो / समस्त धर्मों की शिक्षा दी जाए / अनुकूल धर्म का सचेतन चुनाव जरूरी / चुनाव की स्वतंत्रता / जीवंत धर्म-मुर्दा धर्म / कवि, चित्रकार का धर्म / गणितज्ञ का धर्म / प्राथमिक खोज-स्वयं का परिचय / अन्य मार्गों का समादर / प्रेम और काम-वासना में क्या फर्क है? / काम प्रेम बन सकता है / आकर्षण के तीन तल-शरीर, मन और आत्मा / काम, प्रेम और भक्ति / शरीर से ऊपर उठे / शरीर की निंदा न करें / सारा जगत काम-ऊर्जा का खेल / मनुष्य काम से ऊपर उठ सकता है / काम से प्रेम / प्रेम से भक्ति / कर्म और कर्म-योग में क्या फर्क है? / कर्म-योग की तीन पहचान / अशांति का विसर्जन / सुख-दुख, सफलता-असफलता में समभाव / साक्षीभाव का बढ़ना / कर्तव्य का बोझ ढोना कर्म-योग नहीं है / कर्तव्य नहीं—प्रेम / प्रभु की मर्जी / सही दिशा की कसौटी-आनंद का बढ़ना / उदास साधु-साधु नहीं / सब परमात्मा कर रहा है / कर्म तू कर–फल मुझ पर छोड़ / फल आपके हाथ में नहीं है / मर्म को जाने बिना अभ्यास न करें / शीर्षासन से मस्तिष्क के नाजुक तंतुओं को खतरा संभव / मस्तिष्क की निद्रा के लिए विशिष्ट मात्रा का रक्त-प्रवाह जरूरी / अंतस साधना-नाजुक और जटिल प्रक्रिया है / घड़ी सुधारने की बचकानी उत्सुकता / परोक्ष-ज्ञान अर्थात शास्त्रोक्त ज्ञान / शास्त्र अज्ञानियों को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं / जीसस की कहानियों की सात-सात परतें / शास्त्रों में छिपी हुई कुंजियां / कुंजियों के दुरुपयोग की संभावना / विज्ञान के सूत्र–राजनीतिज्ञों के हाथ में खतरनाक / शास्त्रों की एक वैज्ञानिक व्यवस्था / शास्त्र ज्ञान से स्वानुभव की ओर / परमात्मा का स्मरण कैसे करें / शांत व शिथिल होकर किसी मूर्ति या इष्ट या किसी ध्वनि पर धारणा करना / जो भी प्यारा हो / स्वयं की फोटो या स्वयं के नाम से काम हो जाएगा / कर्मों का फल परमात्मा पर छोड़ दें तो भी ध्यान फलित / अकारण बोझ ढोना / कर्ता परमात्मा

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