Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 13
________________ से चले—प्रेम पर पहुंचे / कृष्ण परिपूर्ण प्रेम हैं लेकिन भीतर शून्य हैं / साधक विपरीत के आकर्षण से बचे / प्रेम सहज हो-तो भक्ति मार्ग है / उन्मत्त प्रेम-सगुण का मार्ग / निर्विचार शून्यता—निराकार, निर्गुण का मार्ग / निज रुझान पहचानना। पाप और प्रार्थना ... 31 आज के बौद्धिक युग में भाव और भक्ति का मार्ग कैसे उपयुक्त हो सकता है? / सारा शिक्षण बुद्धि का / एक अति से दूसरी अति पर जाना आसान/ आज का युग-बुद्धि से पीड़ित / भाव की तरफ उन्मुख होने की विराट संभावना / बुद्धि के शिखर से भाव की गहराई में गति / पश्चिम में बुद्धि और सभ्यता के विपरीत बगावत / उपलब्धि में भ्रम-भंजन संभव / समृद्धि से फलित संन्यास / गरीबी का मजा-अमीरी के बाद / महातार्किक चैतन्य का परम भक्त बन जाना / प्रौढ़ता से गहराई का जन्म / प्रौढ़ता+सरलता-संतत्व / विपरीत का अनुभव जरूरी / भक्ति के बड़े युग की संभावना / बुद्धि की सीमा का बोध / बुद्धि के शिखर पर बुद्धि का अतिक्रमण / जीवन का रहस्य हृदय से हल / पापी कैसे प्रार्थना कर सकता है? / पापी रहकर ही प्रार्थना करनी पड़ेगी / पुण्य के नाम पर भी अहंकार-पोषण / प्रार्थना औषधि है / समग्र अस्तित्व का सहयोग जरूरी / क्या है पाप, क्या है पुण्य / अमूछित कृत्य पुण्य है-और मूर्छित कृत्य पाप / जहां हैं, वहीं से प्रार्थना शुरू करें / होश की छाया-पुण्य / पाप प्रार्थना में बाधा नहीं है / प्रार्थना को स्थगित मत करें / गिरना-उठना-सीखना / तुतलाती प्रार्थना-और अस्तित्व का आनंद / निर्गुण, निराकार के मार्ग की कठिनाइयां / अकेले की बेसहारा यात्रा / भक्त को परमात्मा का सहारा / अकेलेपन की पीड़ा / निराकार की साधना में अहंकार का खतरा / भक्त का समर्पण पहले ही चरण पर / ग्रेविटेशन और ग्रेस का शाश्वत नियम / समर्पण होते ही प्रभु-प्रसाद सक्रिय / उद्धार अर्थात ग्रेस के नियम में आ जाना / अहंकार का बोध उतरना-पहले चरण पर या अंतिम चरण पर / भक्त अर्थात जो मिटने को तैयार / समर्पण और तात्कालिक उद्धार। संदेह की आग ... 49 संदेह और अश्रद्धा से भरा व्यक्ति कैसे प्रार्थना और भक्ति करे? / अश्रद्धा की पीड़ा और अनास्था का कांटा / कुनकुनी श्रद्धा / नरक का अनुभव जरूरी / पुरी अश्रद्धा के बाद श्रद्धा / पकी हुई नास्तिकता / आग से गजर कर निखार / पके पत्ते का गिरना / लोभ से न खोजें / समग्र संदेह और श्रद्धा का जन्म / बिना श्रद्धा के आनंद असंभव / धर्म है-आनंद की खोज / ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण मिलना कठिन है, तो श्रद्धा कैसे हो? / प्यास की कमी के कारण-प्रमाण की मांग / अपनी बेचैनी और प्यास को समझो / ईश्वर के बिना तृप्ति नहीं / एक परम आश्रय की खोज / आदमी है-परमात्मा की प्यास / प्यास ही प्रमाण है / तर्क और शास्त्रों से प्यास नहीं बुझती / सब कुछ उसका प्रमाण है / परमात्मा की निकटतम झलक-स्वयं में / क्षुद्र में उलझा हुआ चित्त / रुकें-मौन हों-भीतर झांकें / देखने वाली आंखें चाहिए / ध्यान की आंख, भक्ति की आंख, श्रद्धा की आंख / अनुभव की पात्रता / अनुभव से प्रमाण / ध्यान और प्रेम के मार्ग में क्या फर्क है? / भिन्न व विपरीत मार्ग से-पहुंचना एक ही मंजिल पर / प्रेम की प्रक्रिया-मैं खो जाए, तू ही बचे / ध्यान की प्रक्रिया है-मैं ही बचूं, शेष सब मिट जाए / रास्ता बिलकुल अलग-अलग / तू के मिटते ही मैं भी मिट जाता / एक के मिटते ही दूसरा भी मिट जाता है / जीवन-मृत्यु, प्रकाश-अंधेरा, सुख-दुख-साथ-साथ / मिटने का स्वाद / प्रेम में मिटना सीखना / प्रेम में अमृत की झलक / प्रेम से अभय / परमात्मा का प्रेम पूरा मिटा डालेगा / पहले भाव-फिर तर्क / भाव से अनुभव-तर्क से अभिव्यक्ति / अहंकार का भ्रम-कि सब कुछ उस पर निर्भर / तर्क है-अहंकार का सहारा / भावों का दमन / शराब-कुछ देर बुद्धि से छुटकारे के लिए / नशे में दमित भावों का रेचन / नींद से ताजगी-तर्क और बुद्धि से मुक्ति के कारण / सपने में बुद्धि का हट जाना / सपने से ताजगी / भाव और अहंकार विसर्जन।

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