Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 21
________________ समस्त विपरीतताओं का विलय-परमात्मा में ... 257 श्रद्धा क्या है? और अंध-श्रद्धा क्या है? / श्रद्धा हृदय की बात है-अंध-श्रद्धा बुद्धि की / अंध-श्रद्धा भय और लोभ पर आधारित / भीतर छिपा संदेह / झूठे आस्तिक से नास्तिक होना अच्छा / नास्तिक नहीं झूठे आस्तिक अधार्मिक हैं / बुढ़ापे में आस्तिक हो जाना / जितना स्वयं के भीतर जाएंगे उतनी ही श्रद्धा बढ़ेगी/परमात्मा भीतर छिपा है / जिसका अनुभव संभव, उस पर भरोसा अनावश्यक / असंदिग्ध अनुभव-केवल स्वयं का संभव / शेष सभी अनुभव माध्यम के द्वारा / मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड रखकर बिना इंद्रियों के सब अनुभव / मस्तिष्क के तंतुओं को हिलाकर संभोग का अनुभव / स्वानुभव के बिना श्रद्धा नहीं / आपने बहु-प्रेम-संबंध को व्यभिचार कहा / लेकिन एक-प्रेम संकीर्ण व मोहयुक्त लगता है और बहु-प्रेम मुक्त व विस्तीर्ण / कृपया स्पष्ट करें / मुक्तिदायी है-एक को प्रेम या अनंत को प्रेम / अनेक को प्रेम-उलझाता है / बदलता हुआ प्रेम-छिछला / प्रेम पात्र बदलते हैं, क्योंकि प्रेम करना नहीं आता / एक ही जगह खोदें / पश्चिम में प्रेम एक खिलवाड़ हो गया है / सभी धर्म ठीक हैं—ऐसा कहकर धर्म से बचना / एक में ही पहले डूबें / एक ही रास्ते पर चला जा सकता है / मंजिल एक–रास्ते भिन्न / दुनिया के दो मौलिक धर्म-हिंदू और यहूदी / एकीभाव से भीतर एकजुटता (इंटिग्रेशन) घटित / व्यर्थ के कुतूहल / दर्शन-शास्त्र के अंतहीन प्रश्न / दर्शन-शास्त्र खुजली जैसा है / एकमात्र समाधानः अमृत का अनुभव / सभी दुखों का आधार-मृत्यु का भय / आदिरहित और अकथनीय ब्रह्म / परमात्मा दोनों है-अस्तित्व-अनस्तित्व, जीवन-मृत्यु / भाषा द्वैत निर्मित है / प्रकट ः उसका है-रूप, अप्रकट ः उसका नहीं-रूप / परमात्मा के प्रकट तथा अप्रकट दोनों रूपों का ज्ञान मुक्ति है / ध्यान, प्रेम, समर्पण, भक्ति-मिटने के, नहीं होने के उपाय / शब्द सत्य की ओर इंगित मात्र कर सकते हैं / परमात्मा-सब ओर से हाथ-पैर, नेत्र, सिर, मुखवाला-सर्वव्यापी है / श्रद्धायुक्त हृदय की पुकार वह सुनता है / संदेह मिटे तो ही श्रद्धा का जन्म / कुछ प्रयोग करना पड़े, जिनसे संदेह गिरे और श्रद्धा जनमे / संदेहों का गिरना-स्वयं में प्रवेश से / वह भीतर भी है और बाहर भी / मछली और सागर जैसा संबंध है-व्यक्ति और परमात्मा के बीच / इंद्रियों के भीतर से जानते हुए भी वह इंद्रियरहित है / भीतर देखने का अभ्यास / अंधा भी आत्मा को देख सकता है / बहरा भी ओंकार-नाद सुन सकता है / अंतस प्रवेश के लिए गूंगा, बहरा और अंधा होना पड़ता है / वह निर्गुण भी है और गुणों को भोगने वाला भी / मन की सबसे बड़ी कठिनाई-विपरीत को जोड़ने में / बुद्धि प्रिज्म की तरह तोड़ती है / मन, बुद्धि और इंद्रियों के हटते ही समस्त विपरीतताओं का जुड़ जाना / अर्जुन की बुद्धि को समझाना नहीं, तोड़ना है / बुद्धि को तोड़ने का उपाय–विपरीत सत्यों को एक साथ देखना / वह निर्गुण भी है-और सगुण भी / दो पंथ-निर्गुणवादी और सगुणवादी / बोध कथाः न पताका हिल रही है, न हवा-मन हिल रहा है / मूर्ति तोड़ने वाला मुसलमानः मूर्ति से बंधा हुआ / मन का एक पक्ष को चुनना और विपरीत पक्ष से लड़ना / चुनाव द्वंद्व है और अचुनाव अद्वैत। स्वयं को बदलो ... 275 आपके प्रवचन और ध्यान के प्रयोग-सूत्र अच्छे लगते हैं / लेकिन कीर्तन के समय कोई भाव क्यों नहीं उठता? / केवल बातें सुनते रहने का बहुत मूल्य नहीं है / कुछ करना हो, तो कठिनाई / करने से बचने की तरकीबें / कहना कि गलत है, न करेंगे / पागल होने का साहस / धार्मिक लोगों से सांसारिक लोगों को कष्ट / मरे हुए कृष्ण को पूजना आसान / लोगों का भय छोड़ना पड़ेगा / शांत प्रयोग अक्सर सफल नहीं होता / भीतर की अशांति और उपद्रव का रेचन ध्यान के पहले जरूरी / तूफान के बाद गहन शांति / मैं बोलता है, ताकि आप कुछ करें/ अन्य-धर्मी कृष्ण को परमात्मा नहीं मानते, तो क्या किया जाए? / दूसरों के लिए परेशान न हों, खुद जीवन में उतारें / हम दूसरों को बदलना चाहते हैं-स्वयं को नहीं / अपना शास्त्र दूसरों पर न लादें / गीता को महान कह कर अपने अहंकार की पुष्टि करना / अहंकार की छिपी घोषणाएं / प्रत्येक व्यक्ति परम ब्रह्म है-चाहे ब्रह्म अप्रकट ही हो ।

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