Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 20
________________ - - मुक्ति अर्थात क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ के तादात्म्य का टूटना देव योनि से क्यों संभव नहीं है? / दुख मूर्च्छा को तोड़ता है / सुख के बंधन से छूटना कठिन है / न स्वर्ग में कोई साधना करता — न नर्क में / मनुष्य स्वर्ग भी है — और नर्क भी / मनुष्य असंतोष है / मनुष्य होकर साधना न करना - आश्चर्यजनक है / मनुष्य से तीन रास्ते जाते हैं स्वर्ग नर्क और मोक्ष / स्वर्ग भी अर्जन है – नर्क भी / मोक्ष अर्जन नहीं स्वभाव है / ज्ञान के लक्षण / श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव / ब्राह्मण की सूक्ष्म अकड़ / हिंदुस्तान में कभी क्रांति नहीं हुई, क्योंकि ब्राह्मण क्षत्रिय के ऊपर रखा गया / श्रेष्ठता बनी रहे, तो ब्राह्मण गरीबी से भी राजी / रूस में क्रांति तब तक असंभव, जब तक बुद्धिजीवियों की श्रेष्ठता न टूटे / ज्ञान का जरा-सा स्वाद और श्रेष्ठता का रोग शुरू / ज्ञान के साथ-साथ विनम्रता भी बढ़ती जानी चाहिए / ज्ञान का दूसरा लक्षण: दंभाचरण का अभाव / दंभाचरण है - आदर की तलाश / सहजता है सदाचरण / दूसरों को सताओगे तो खुद सताए जाओगे / क्षमा-भाव / दया में भी अहंकार है / ज्ञानी को स्वानुभव के कारण मनुष्य की कमजोरियों का पता / बड़ा पापी हूं - इसका भी अहंकार / सरल अर्थात सीधा-सादा अनायोजित / बच्चे सरल होते हैं- भीतर बाहर एक से / भावों की सहज अभिव्यक्ति / आपका हंसना भी झूठा, रोना भी झूठा / सरलता की कठिनाइयां / असली तपश्चर्या है— सरलता / आचार्योपासना / स्वयं को अज्ञानी स्वीकार करना अत्यंत कठिन / शिक्षक और विद्यार्थी का काम चलाऊ संबंध / शिष्य गुरु को प्रत्युत्तर में कुछ भी दे नहीं सकता / गुरु से जो पाया, उसे किसी और शिष्य को देना / दोषों की खोज स्वयं में करना - ज्ञान का लक्षण है / स्वयं में दोष-दर्शन - दोष मुक्ति का पहला कदम / दूसरे दोषी हैं, तो तुम कभी न बदल पाओगे / ज्ञान के लक्षण का बढ़ना और प्रभु मंदिर की निकटता का बढ़ना । 4 समत्व और एकीभाव 239 800 - मनुष्य की बेचैनी का कारण क्या है? उसका क्या उपयोग संभव है? / मनुष्य एक सेतु है— पशु और परमात्मा के बीच / अतीत और भविष्य के बीच तनाव / वापस पशु हो जाने की राहत शराब व संभोग में / अधूरेपन की बेचैनी / बेचैनी का दुरुपयोग- क्रोध, हिंसा, घृणा, प्रतिस्पर्धा आदि में / दुख व बेचैनी को भुलाने के उपाय करना / बेचैनी की शक्ति को साधना में लगाना / क्रोध की ऊर्जा का सृजन में नियोजित करना / क्रोध के तटस्थ निरीक्षण से उसका रूपांतरण / अंतर्यात्रा के लिए ईंधन / अधिक बेचैनी, काम, क्रोध – सौभाग्य है / काम-क्रोध की खाद से अध्यात्म का फूल खिलना / साक्षी भाव को माली बनाएं / पलायन नहीं - साक्षात्कार / न भागो, न लड़ो - वरन जागो / जो भीतर है, वही बाहर प्रकट करें, तो समाज की नीति व्यवस्था में अराजकता आ जाए / क्या कोई मध्य मार्ग है? क्या कुछ भौतिक अनुशासन जरूरी नहीं ? / व्यक्ति झूठा है, तो समाज भी झूठा होगा / असत्य समाज में सत्य से अराजकता का आना / संन्यासी द्वारा समाज के झूठ का इनकार / झूठ सुविधापूर्ण है / सुविधा के लिए आत्मा को मत बेचना / झूठ की श्रृंखला / असत्य में पहले सुख, बाद में दुख / तथाकथित ज्ञानी व वास्तविक ज्ञानी को बाहर से कैसे पहचाना जाए ? / दूसरों की फिक्र छोड़ो, अपनी ओर देखो / स्वयं दंभशून्य होकर ही दूसरे की पहचान संभव / अहंकारी व्यक्ति को कृष्ण के वक्तव्य परम अहंकारपूर्ण लगेंगे / सदगुरुओं की चिंता छोड़ो, अपनी चिंता करो / प्रत्येक सदगुरु के अपने ढंग हैं, और अपनी व्यवस्था है / कुछ ज्ञानियों द्वारा हिंसा, क्रोध व भद्दी गालियों का उपयोग / व्यर्थ लोगों को दूर करने के आयोजन / बिना निर्णय लिए निकट रहने की क्षमता / सदगुरु बड़ी परीक्षाएं लेते हैं / तथाकथित गुरु तुम्हारे अहंकार को फुसलाएगा / समत्व कैसे उपलब्ध हो / सुख-दुख में सजगता रखें, कुछ क्षण रुकें, देखें / अनुभव और प्रतिक्रिया के बीच फासला बनाएं / गुरजिएफ द्वारा चौबीस घंटे बाद जवाब देना / दूर खड़े होकर देखने पर सुख-दुख में समत्व का बढ़ना / अव्यभिचारिणी भक्ति / व्यभिचारी मन - खंडित मन / एक प्रेमी से एकीभाव की ओर / अनेक से एक फिर एक से अनंत / एकलव्य की अव्यभिचारिणी भक्ति / भीड़ खोजना गलत मन का लक्षण / एकांत में ही स्वयं में प्रवेश / बुद्ध, महावीर, मोहम्मद, जीसस - सभी को एकांत में जाना पड़ा था / हम अकेलेपन से घबड़ाते हैं / बोर करने का मनोविज्ञान / वासनाशून्य व्यक्ति की निकटता / स्वयं में परमात्मा का बोध हो, तो ही सर्वत्र उसका बोध होना संभव / व्यभिचारी दूसरों में भी व्यभिचार का संदेह उठाता है / परमात्मा का सर्वत्र दर्शन ज्ञानी का लक्षण ।

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