Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 12
________________ अनुक्रम गीता-दर्शन अध्याय 12 प्रेम का द्वार: भक्ति में प्रवेश ...1 . तर्क और गणित का जगत / बुद्धि व समझ के पार हृदय का जगत / बाहर से लगाव मोह है / भीतर मुड़ गया प्रेम भक्ति है / प्रेम का दिशा-परिवर्तन / प्रेम की आंख ः हृदय / वासना और श्रद्धा / बुद्धि के लिए प्रेम अंधा है-और भक्ति भी / बुद्धि से अहंकार / प्रेम की छलांग / भक्ति-योग की श्रेष्ठता के कारण / दो के बीच एकत्व की घटना / योग अर्थात मिलन-दुई का मिट जाना / परमात्मा हमारे लिए प्रतीक्षारत है / हमारा एक कदम उठाना आवश्यक है / ज्ञान का लंबा चक्कर / भक्ति में पहला कदम ही अंतिम कदम है / भक्त का पागल साहस / ज्ञानी का हिसाब-किताब / बुद्धि से हृदय की ओर वापसी / तर्क वेश्या जैसा है / तर्क से उदासी का जन्म / तर्क के लिए अगम्य है भक्ति / भक्ति श्रेष्ठ है या ध्यान/ सगुण भक्ति और निर्गुण ध्यान / विचार और धारणा भी आकार है / निराकारवादी–नास्तिक जैसा / बुद्ध का इनकार, ताकि आप शून्य हो सकें / अनन्य भक्ति अर्थात सब परमात्ममय हो जाए / परमात्मा के प्रेम में खो जाना / अर्जुन के लिए भक्ति श्रेष्ठ है / अधिक लोगों के लिए भक्ति-योग उपयुक्त / प्रेम की गहन नैसर्गिक भूख / प्रेम लेना भी जरूरी-और देना भी / एकाग्रता का सहज अंकुरण-प्रेम में / आइंस्टीन का गणित से प्रेम / प्रेम की बहुत चर्चा-प्रेम के अभाव का सूचक / भजन अर्थात सबमें परमात्मा की ही झलक / जगत प्रतिध्वनि है / तर्क पर आधारित श्रद्धा-निकृष्ट/नास्तिकों से भयभीत आस्तिक / श्रेष्ठ श्रद्धा-अनुभवजन्य / विश्वास है-भरोसे का अभाव / लहर नहीं है-सागर ही है / जो तर्क से सिद्ध–वह तर्क से असिद्ध भी / परमात्मा न तर्क से सिद्ध होता-न तर्क से असिद्ध / अनुभव की नाव ही वास्तविक नाव है / प्रेम परम योग है। दो मार्ग: साकार और निराकार ... 15 प्रार्थना, उपासना करते हैं, फिर भी इच्छा पूरी क्यों नहीं होती? / मांग शिकायत है / गलत मांगें / परमात्मा को सलाहें देना / मांगशून्य चित्त ही मंदिर में प्रवेश पाता है / मांग के साथ प्रार्थना असंभव / प्रार्थना अहोभाव है-धन्यवाद है / जो उसकी मर्जी / भक्ति में इष्ट देवता की उपासना भी क्या वासना है? / भीतर जाने का सिर्फ एक उपाय है / वासनाओं को एकाग्र करना / मन के प्राण-अनेकत्व में, परिवर्तनशील में / मन अर्थात चंचलता/मन अर्थात अशांति / अशुद्ध भाषा का उपयोग-करुणावश / बाह्य त्याग से आंतरिक त्याग में सहायता / परमात्मा की धारणा का उपयोग / अनेक से एक-फिर एक से अद्वैत / अनुभवशून्य साधक कैसे श्रद्धा की ओर बढ़े? / अनुभव नहीं-इसका बोध / ज्ञान की भ्रांति / परमात्मा का अनुभव थोड़ा-थोड़ा नहीं होता / अनुभव कैसे हो-इसकी खोज / बोध के लिए ध्यान का प्रवाह जरूरी / ध्यान या प्रार्थना की विधियां / मार्ग चुनकर चल पड़े / सगुण या निर्गुण-पहुंचना एक ही जगह / साकारवादी और निराकारवादी के बीच का विवाद / हमारी संकीर्ण दृष्टि / शून्यता और पूर्णता एक ही / मार्ग का भेद / महावीर शून्य

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