Book Title: Gandavyuha sutram
Author(s): P L Vaidya
Publisher: Mithila Institute Darbhanga

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Page 471
________________ ४३३ 8546 B217 ५६ समन्तभद्रचर्याप्रणिधानम् । एवमशेषत सर्वदिशासु __ ओतरि क्षेत्रवियूह जिनानाम् ॥ ३४ ॥ ये च अनागत लोकप्रदीपा स्तेषु विवुध्यन चक्रप्रवृत्तिम् । निर्वृतिदर्शननिष्ठ प्रशान्ति ___ सर्वि अहं उपसंक्रमि नाथान् ॥ ३५॥ ऋद्धिबलेन समन्तजवेन ज्ञानवलेन समन्तमुखेन। चर्यबलेन समन्तगुणेन मैत्रबलेन समन्तगतेन ॥ ३६॥ पुण्यबलेन समन्तशुभेन ज्ञानबलेन असङ्गगतेन। प्रज्ञउपायसमाधिबलेन बोधिबलं समुदानयमानः ॥ ३७॥ कर्मवलं परिशोधयमानः क्लेशबलं परिमर्दयमानः। मारबलं अवलंकरमाणः पूरयि भद्रचरीवल सर्वान् ॥ ३८ ॥ क्षेत्रसमुद्र विशोधयमानः सत्त्वसमुद्र विमोचयमानः। धर्मसमुद्र विपश्ययमानो ज्ञानसमुद्र विगाहयमानः ।। ३९ ।। चर्यसमुद्र विशोधयमानः प्रणिधिसमुद्र प्रपूरयमाणः। बुद्धसमुद्र प्रपूजयमानः कल्पसमुद्र चरेयमखिन्नः ॥ ४० ॥ ये च त्रियध्वगतान जिनानां बोधिचरिप्रणिधानविशेषाः। तानहु पूरयि सर्वि अशेषान् __ भद्रचरीय विबुध्यिय बोधिम् ॥ ४१ ॥ 15 १यानवलेन. गण्ड, ५५

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