Book Title: Epigraphia Indica Vol 34
Author(s): D C Sircar
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 293
________________ 218 13 पश तथा साक्षी व्रा (ब्रा) ह्मण 15 विशेकस्स 17 EPIGRAPHIA INDICA चरीनस्य खल्लापल्लिग्रामनिवासी साक्षी भट्टल्लेल्लस्य 14 तथा साक्षी केहकस्य कृसंवग्रामनिवासी ब्रा (ब्रा) ह्मण भट्टदत्तस्य तथा ब्रा (ब्रा) - [वे (पॅ ? ) ]ण भट्टस्य तथा साक्षी वा (ब्रा) ह्मण णासाक्षी ——— 18 चतुर्भागयो तथा सि (शि) बाराप (?) कस्य' एव (ब) द्रादित्वेन स्वहस्तदत्तस्य मार्गशिरमास शुद्धसप्तम्यां भौम 16 दिने विष्ट्या (यां) पूर्वाह्न एवं श्रीचंद्रादित्येन श्रद्धया परमाविष्ट स्वहस्तेन स्वस्ती (स्ति) धनं सदित्यदशापराधं प्रकरप्रयुक्तं श्रग्गकस्य चतुर्भाग हिलोहिलग्रामे श्रीहर्षपुं (पु) " तेन करणभुलायसमक्षं तथाकै ईश्वरस्य अध्यक्षभट्ट द्वा (वा) सुदेव 19 तथा षडंगविद्] षडंगवि[*] भट्टमहाप्रतीहार अईम्मत वालेश्वर श्रीचंद्रादित्येन समे (म ) करणसहितं भुई" 20 व" कट्ट" मातृगणस्य [1] रादिभि][: । * ] यस्य यस्य यदा 21 फलं (लम्) [11*] सुवर्णमेकं गामेकं यावदाहूतसंप्लवं । इति ॥ तथा 1. Shastri : dho.. * May be a mistake for Ahiraaya. Gai; Keukasya.. 4 [Bhastri Kaacarba Gai lebasarva. Gai: Sépa 1 This may be kerita. 17 This may be a mistake for bhapa. स्थम - 'च" सीमायां स्फोटनं च पादाटकग्रामे चतुर्भाग द्वितीय (य) -- [VOL. XXXIV साक्षी व्रा (बाह्मण *] श्रयं सत्तके " श्रीचं भाट* ] महाबलाधिकृत महाबलाधिकृत वा (ब्रा) ह्यणभट्ट भाउल्ल एवं अनेकैर्व्वसुधा भुक्ता राजभिः *] सगभूमि[स् *] तस्य तस्य तदा भू[म्यामप्येकमंगुलं । हरंति नरको यांति • The reading of these letters is doubtful. "Gai: Simbhanakasya: This reading was suggested to me by Dr. Rahurkar. Dr. Shastri thinks that the Dhanishthä nakshatra may have been intended Gai ashjahaatha (ata) margaris. 19 This may be a full-stop. 11 Shastri: ava: but the awuevara is clear. 12 Shastri : athi which is impossible 18 This may be a mistake for sattrakē. 14 The dots on either side of the letter are absent. 15 Shastri: bivide.

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