Book Title: Epigraphia Indica Vol 34
Author(s): D C Sircar
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 309
________________ 232 EPIGRAPHIA INDICA यः समर्थोप्युपेक्षि (क्ष) ते 1 सर्वधर्म्मव ( ब ) हिकृ (ष्कृ ) तः ॥ [ १९*] 78 कर्म्मणा मनसा वाचा 79 स [स्यात्सदैव चांडाल: 80 सामान्योयं धर्म्मसेतुं (तु) नृ (र्नृ) पाणां काले काले पा 81 लनी [यो] भवद्भिः । सर्वानेताद्भाविनः पार्थि 82 [वें ]द्रा[न् * ] भूयो भूयो याचते रामचंद्रः 83 पत्तिपत्त (न) विद्वश्री ( च्छ्री ) पादसेविना [*] 84 दित्य[देवेन ] स (से) यं सा (शा) सनपद्धतिः ॥ 85 यं त्रिभुवनविद्याचक्रवर्तिनः स्त्री (श्री) मदादि ॥ [ २०* ] शक्तिव्यु रवि (चि) ता [२१*] कृतिरि 86 न्य (त्य) देवेन' [1*] लिखितं पंडितगोल्लणेन ॥ उकि 87 रितं विनाणिपंडयेन [*] मंगलमहाश्रीश्री ॥ [VOL. XXXIV 1 [Read 'devasya.-Ed.] • Read utkirna. On the back of the plate there are three lines of writing. As indicated above, the engraving of the deunint was originally began there.

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