Book Title: Dravyavigyan
Author(s): Vidyutprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 5
________________ प्रकाशकीय वीतराग-वाणी मोक्ष का विज्ञान है। उन्होंने केवलज्ञान के आलोक में जगत के यथार्थ स्वरूप का दर्शन कर तत्त्वों का निरूपण किया। परमात्मा की वाणी पूर्ण वैज्ञानिक है। यदि कोई तत्त्व विज्ञान की पकड़ में नहीं आता तो यह उसका अधूरापन है। इससे परमात्मा की वाणी में शंका करने का कोई आधार नहीं है। परम पूजनीया परम विदुषी महाप्रज्ञा डॉ. साध्वी श्री विद्युत्प्रभा श्रीजी म.सा. ने प्रस्तुत ग्रन्थ में षड् द्रव्यों का विवेचन प्रस्तुत किया है। जगत षड् द्रव्यमय है। इसके अलावा और कुछ भी नहीं है। परम पूज्य गुरुदेव, प्रज्ञापुरुष, युगप्रभावक स्व. आचार्य देव श्री जिन कान्तिसागर सूरीश्वरजी म.सा. की पावन स्मृति में पूज्य गुरुदेव गणिवर्य श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की प्रेरणा से संस्थापित 'कान्ति प्रकाशन तथा प्राकृत भारती अकादमी के संयुक्त प्रकाशनत्व में इस ग्रन्थ को प्रकाशित कर हम हर्ष व गौरव का अनुभव कर रहे हैं। प्रज्ञा मनीषी सिद्धहस्त लेखक डॉ. श्री नेमीचन्दजी जैन ने भूमिका लिखकर ग्रन्थ के गौरव को बढ़ाया है, हम एतदर्थ उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। ग्रन्थ-प्रकाशन के व्यवस्थित कार्यक्रम में सहयोगी बने श्री हेमन्तकुमारजी शेखावत का भी आभार प्रदर्शित करते हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ आदरणीय बनेगा। ज्ञान-जिज्ञासा का आधार बनेगा, इन्हीं आशाओं के साथ ग्रन्थ आपके कर-कमलों में प्रस्तुत है। देवेन्द्रराज मेहता सचिव प्राकृत भारती अकादमी जयपुर द्वारकादास डोसी अध्यक्ष कान्ति पारस प्रकाशन, बाडमेर ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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