Book Title: Dravyapraman Prakaranam Evam Kshetrasparshana Prakaranam
Author(s): Jagacchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 68
________________ क्षेत्रस्पर्शनाप्रकरणम् (मूलगाथा:) नमिउं अरिहंताई सगुरुपसाया सुयाणुसारेणं । बेमि गइआइगेसुं जीवाणं खित्त-फुसणाऊ ॥१॥ गइ - इंदिए य काये, जोए वे कसाय - नाणे यं । संजम - दंसण-लेसा, भव- सम्म सन्नि - आहारे ॥२॥ सगचते-गुणवीस-दु चत्ता - ऽद्वार - चउ-पंच- अट्ठट्ठा । चउ-छ-दु-सत्त- दुग-दुगं, चउसयरिसयं कमा णेया ॥३॥ संपइकाले खेत्तं, फुसणा पुर्ण होड़ अइगये काले । खेत्तं तिहोववाय-स ठाण - समुग्धायभेयाओ ॥४॥ तिरिये एगिंदिय-भू दग - अगणि-पवण- णिगोअओहेसुं । तेसिं सुहुमोहेसुं तेसिं च अपज्ज -पज्जेसुं ॥५॥ ६६

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