Book Title: Dravyapraman Prakaranam Evam Kshetrasparshana Prakaranam
Author(s): Jagacchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ शान्ताक्रुझमां कीधी प्रतिष्ठा, श्री खापोली गामे । प्रतापनगर ने पालीताणा, इत्यादिक शुभधामे...गुरुजी प्या० ॥३६॥ भौतिकवादना मूढ मारथी, रक्षवा भावी संघ ।। आध्यात्मिक-शिक्षायतनो जे, योज्यां श्रावक संघ...गुरुजी प्या० ॥३७॥ मोकलीया तीहां शिष्य-प्रशिष्यो, तें गीतारथ जाण । भाव दया निज हृदय धरीने, पाई जिननी वाण...गुरुजी प्या० ॥३८॥ बाल-युवान जनो बूझवीया, कीधा शासन रागी, । तत्त्वामृत-वैराग्य पानथी, थया केई तो त्यागी...गुरुजी प्या० ॥३९॥ भव्य तुज इतिहास गुरुजी ! प्रभावक सूरिगणमां । प्रभावना-स्वस्तिक तें पूर्या, जिनशासन-प्रांगणमां...गुरुजी प्या० ॥४०॥ हे ! गुणसागर ! भविकजदिनकर ! शुद्धचरणना धारी ! कृपा करी तुमे करुणा सागर ! लेजो जगत उगारी...गुरुजी प्या० ॥४१॥ [७] (राग-धन धन ते दिन क्यारे आवशे, जपशुं जिनवर नाम...) अडसठ वर्ष संयम शुद्ध पाल्युं वरस पंचाशी आय । तेत्रीस वर्ष सूरिपद निर्मल, प्रमत्तपणुं नहि प्राय ॥१॥ चरम चोमासुं स्थंभन पुरमां, बेंतालीश मुनि साथे । गच्छाधिप सूरिवर श्री आपनी, आणा धरता माथे ॥२॥ पूर्ण थयुं चोमासुं लगभग, भव्य आराधन साथे । संवत बे हजार चोवीशना, नूतन वर्ष प्रभाते ॥३॥ श्रीगुरु-मुखथी सुणी श्री संघे, मंगल जिनवर वाणी । गुरु-पूजन करी निज निज हस्ते, कीधी दिव्य कमाणी ॥४॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104