Book Title: Dravyapraman Prakaranam Evam Kshetrasparshana Prakaranam
Author(s): Jagacchandrasuri
Publisher: Divyadarshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ [१] (राग-धन धन ते दिन क्यारे आवशे, जपशुं जिनवरनाम) पुण्य क्षेत्र बहु भरत भूमि आ, जिहां थया जिनवर देव । आज तिहां भारत दीसे भलुं, जिहां मळे शासन सेव ॥१॥ जिनपडिमा जिनआगम केरां, जिहां दीसे बहु ठाम । मरुस्थल नाम मधुरुं लोके, राजस्थान शुभ धाम ॥२॥ प्रसिद्धनाम अर्बुदगिरि जिहां, रमणीयतर अति शोभे । जग विख्यात जिनेश्वर चैत्यो, जोतां भवि मन लोभे ॥३॥. . तस परिकरश्यां तीरथ तिहां, पंच पंच नहीं छोटां । . नांदिया दियाणा प्रमुखने, राणकपुरादि म्होटां ॥४॥ संवत ओगणीसें चालीस वर्षे, सुदी फागण पुनमना । कंकुंबाईनी कुखे जनम्या, प्रगट्यां पूर हरखनां ॥५॥ . तात श्राद्ध भगवानजी म्होटा, न्यायादि गुण भरिया । . बात सुणी तस हैये उमटया, हर्षामृतना दरिया ॥६॥ प्रेमचन्द शुभ नामज कीg, प्रेमपात्र थया सहुना । , चन्द्र-आल्हादक मुख-कान्तिथी, मन जीत्यां तें बहुनां ॥७॥ निज मोसाळे जन्म पामी तें, नांदिया कीध पवित्त । वतनथी पूत कीधुं पिंडवाड़ा, तें तो जगतना मित्त ॥८॥ मात तात निज कुल उजाल्यां, प्रसरी आनंद वात ।। बहु दीठा जगमां कुलनंदन, तुज थी अनेरी भात ॥९॥ भड वैरागी बालपणाथी, जिनवाणी चित्तवास । सद्गुरुना सत्संगने पामी, जाण्या मोहना पाश ॥१०॥ ७५

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104