Book Title: Digambar Jain Vratoddyapan Sangrah Author(s): Fulchand Surchand Doshi Publisher: Digambar Jain Pustakalay View full book textPage 5
________________ [ ६ ] उद्यापन करनेवालेको प्रथम स्नान कर शुद्ध वस्त्र ( घोतीदुपट्टा ) धारण करके पूजनोपयोगी द्रव्य सामग्री इकट्ठी करके पृष्ठ १ से ३ तक छपे हुये विधान से अभिषेक और पूजनके लिए जल लाना चाहिए। बाद पृष्ठ “१५” में छपा हुआ "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रः नमोऽर्हते मगवते." इत्यादि मंत्रसे उस जलकी शुद्धि करना चाहिए। बाद पूजन सामग्री धोकर “ ॐ ह्री अईं झौं झौं वं मं तुं सं तं पं झवीं क्ष्वीं हं मं असि आउ वा पवित्र जलेन शुद्ध पात्रे निक्षिप्त पुष्पाणि पूजाद्रव्याणि शोधयामि स्वाहा ।" इस मंत्र से द्रव्यशुद्धि करना चाहिए । ܘ बाद मंडप में वेदी स्थापन कर पृष्ठ १२ से अभिषेक प्रारम्भ करे | इन्द्रस्थापन क्रिया के पीछे पुरा कर्म (वेदी प्रक्षालन, श्रीकार लेखन आदि क्रिया ) करके भगवान और जिस व्रतका उद्यापन हो उसके यंत्रका स्थापन करना चाहिए। भगवानकी स्थापन क्रिया के समय पृष्ठ " ५६ " में दिया हुआ मंगलाष्टक पढ़ना चाहिए । फिर नीरांजन और पाद्याचमन क्रिया करके पृष्ठ “ १२ " में छपा हुआ "ॐ ह्रीं अहं नमः परम ब्रह्मणे विनष्टाष्टकर्मणे अर्घ्यम्" इत्यादि पश्चात् पृष्ठ ४ से ११ तक छपा हुआ दश दिग्पाल पूजन करना चाहिए । उसके बाद पृष्ठ 39. १९ में छपा हुआ क्षेत्रपाल पूजन करके चतुः कलश स्थापन और गन्धोदक कलश स्थापन करके अभिषेक विधिसे पंचामृताभिषेक क्रमसे करना चाहिए। अंतमें पृष्ठ " ५४ " में दिये हुए शांति मंत्र से अभिषेक के समय दक्षिण तरफ स्थापित किया हुआ पूर्ण कलश भगवानके ऊपर ढालना चाहिए | ( शांति मंत्र और अविछिन्न कलश जलधारा साथर होना चाहिए। ) ""Page Navigation
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