Book Title: Digambar Jain Vratoddyapan Sangrah
Author(s): Fulchand Surchand Doshi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 11
________________ दि. जैन व्रतोद्यापन संग्रह अथ वा दिक्पाल पूजा । दिक्पाल तथा क्षेत्रपालकी पूजाके लिए सामग्रो अलग रखना चाहिये। विस्तीर्णे स्वर्णपात्रे सलिलमलयजैश्चारु पुष्पाक्षतान्नः . पक्वान्नैः क्षीरसपिर्दधिफलनिकररध्यमुद्धार्यवयं । यज्ञांगर्दीपधपः परमजिनपतेः पादयोस्त्रिः परीत्य । प्रत्येकं प्रार्थयेऽहं निखिलदिगधिपान यज्ञनिर्विघ्नसिध्ये ।१० दिगीशाः शब्दये युष्मानायात सपरिच्छदाः अत्रोपविशतैत यजे प्रत्येकमादरात् ॥ २ ॥ पूर्वस्यां दिशि। द्वात्रिंशद्वक्रदंतहदनळिननटनाकयोषिन्निकार्य कात्या कैलाशशैलच्छविमलिनिकराक्रांतदानाग्रगंडं । आरुह्य रावतं ही कुलिशधर इहैवागतः पूर्वकाष्ठामव्याच्छच्या सहायो वरकनकरुचिर्वासबोऽर्हन्मखोर्वीम् ।११ । ॐ आं क्रां ह्रीं सुवर्णवर्ण प्रशस्त सर्वलक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन वधुचिन्ह सपरिवार हे इन्द्रदेव ! अत्रागच्छागच्छ संवौषट् स्वाहा । ॐ आं०-अत्र तिष्ठ२ ठः ठः स्वाहा । ॐ आं०-अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् स्वाहा । ॐ इन्द्राय स्वाहा । इन्द्रपरिजनाय स्वाहा । इन्द्रानुचराय इन्द्रमहत्तराय स्वाहा । अग्नये स्वाहा । अनिलाय स्वाहा ।

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