Book Title: Digambar Jain Vratoddyapan Sangrah
Author(s): Fulchand Surchand Doshi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 12
________________ अथ दश दिकपाल पूजा। वरुणाय स्वाहा । प्रजापतये स्वाहा । ॐ स्वाहा । भूः स्वाहा । भुः स्वाहा । स्वः स्वाहा । ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा । स्वधा स्वाहा। हे इन्द्रदेव ! स्वगुणपरिवार परिवृत इदमध्यं पाद्यं जलं गन्धं अक्षतं पुष्पं दीपं चरुं बलिं फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां २ स्वाहा । यस्यार्थ क्रियते पूजा, तस्य शांतिर्भवेत् सदा । शांतिके पोष्टिके, चैव सर्वकार्येषु सिद्धिदा ॥२॥ शांतिधारा । इन्द्राह्वानं । आगकोणे। शुम्भजांबूनदामा मणिगणविलसच्छृङ्गमुर्णायुसूढः । प्राप्ताह्वानो जपाभः करविधृतलसच्छक्तिरग्नींद्र एषः ।। भास्वज्वालाकलापः पुरयमककुभोरंतरालं प्रयातो । भूयात् स्वाहाप्रियोऽस्मिन जिनपतिसवने दीपधूपादिकाले ॥ ___ॐ आं क्रों ह्रीं रक्तवर्ण प्रशस्तसर्वलक्षणसम्पूर्ण स्वायुध वाहनवधूचिन्हसपरिवार हे अग्निदेव ! अत्रागच्छागच्छ संवौषट् स्वाहा ॐ आं क्रों० अत्र तिष्ठ२ ठः ठः स्वाहा । ॐ आं क्रों अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् स्वाहा। ॐ अग्निन्द्राय स्वाहा । अग्निपरिजनाय स्वाहा । अग्निद्रानुचराय स्वाहा । अग्निन्द्रमहत्तराय स्वाहा। अग्नये स्वाहा । अनिलाय स्वाहा । वरुणाय स्वाहा। प्रजापतये स्वाहा । ॐ स्वाहा। भूः स्वाहा । भुवः स्वाहा । ॐ भूभुवः स्वः स्वाहा । स्वधा स्वाहा । हे अग्निन्द्रदेव ! स्वगुणपरिवार परिवृत

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