Book Title: Digambar Jain Vratoddyapan Sangrah Author(s): Fulchand Surchand Doshi Publisher: Digambar Jain Pustakalay View full book textPage 3
________________ GRIBIRTELENDINTI RADAMİRTENZAHIRITENOU HONTANART RAND CONTROVERHEID KO उद्यापन करनेकी विधि ___ सबसे पहिले उद्यापन करनेवालेको स्नान आदिसे शुद्ध होकर जैन मन्दिर में जाना चाहिए और जिस व्रतका उद्यापन करना हो उसका संकल्प करे या वर्तमानतामें गुरुकी आज्ञा लेनी चाहिए। बाद पूजनोपयोगी तथा मण्डलोपयोगी ( साथियाके उपयोगी ) हरएक द्रव्य सामग्री शुद्ध लाना चाहिए। फिर शुभ मुहूर्त में जिस व्रतका उद्यापन करना हो उसका मण्डल (साथिया) नीचे लिखे माफिक कोष्टक (कोठे) का निकाले। उद्यापनके कोष्टक ( कोठों) की संख्या १-रविवार व्रतोद्यापन ९४९ कोष्टक ८१ २-षोडशकारण व्रतोद्यापन (दर्शनविशुद्धि ९८, विनयसंपन्नता ४, शीलभावना १०, अभीक्ष्णज्ञानोपयोग ४२, संवेग १४, शक्ति त्याग ४, शक्तिस्तप २४, साधु समाधि ४, वैयावृत्य ४, अर्हद्भक्ति १३, आचार्य भक्ति १२, बहुश्रुत भक्ति २, प्रवचन ५, आवश्यकपरिहाणि ६, मार्ग प्रभावना १०, प्रवचन वात्सल्य ४) = कुल कोष्टक २५६ ३-रत्नत्रय व्रतोद्यापन ( सम्यक्दर्शन १२, सम्यक्ज्ञान ४८, सम्यक्चारित्र ३३) = कोष्टक ९३ ४-अनंत व्रतोद्यापन १४४१४ = , १९६ ५-अष्टाह्निका व्रतोद्यापन १३४४ = , ५२ ६-नवग्रह* व्रतोद्यापन - , १४१+१ * नवग्रह उद्यापनमें मंडलके नवं कोष्टक निकाले वह पूजनमें पृष्ठ २९० पर छपे माफिक रंगके और उसमें छपी हुई दिशा में निकालें।Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 408