Book Title: Digambar Jain Vratoddyapan Sangrah
Author(s): Fulchand Surchand Doshi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 6
________________ [७] अभिषेक पूर्ण होने के बाद भगवानको प्रतिमाको और यन्त्रको मण्डलके बोचमें रक्खे हुए सिंहासनके उपर स्थापन करे । स्थापन विधिके बाद पृष्ठ "२९" में दिये हुये "ॐ जय जय जय नमोऽस्तु नमोऽस्तु णमो अरहंताणसे विघ्नौधा प्रलयंयांति" तक पढ़के पृष्ठ "३०" में दिया हुआ सकलीकरण, करन्यास और अंगन्यास क्रमसे करना चाहिए (सकलोकरणमें छपा हुआ " जलयन्त्र" को नागवेलके पान ऊपर निकालकर सकलोकरण पूर्ण होनेके बाद उस यन्त्रको एक थाली में रखकर साथमें एक कटोरोमें या खोपराकी कटोरी में खड़ी सक्कर ( मित्रो ) या फल रखकर उस थालीको मण्डलके बीच में सिंहासनके नोचे रक्खे । उसमें कुछ द्रव्य और पुष्प आदि डालना चाहिये । - पश्चात् सहस्रनाम पूर्ण पढ़के स्वस्ति विधान करके देव, शाख, गुरुपूजा, सिद्धपूजा और कलिण्ड पूजा ये पंच पूजा करके उद्यापन प्रारम्भ करे । उद्यापन पूर्ण होनेके बाद पुण्याहवाचन, आरती, शांति और विसर्जन अनुक्रमसे करना चाहिए। तथा शक्ति अनुसार उपकरण मन्दिरमें देना चाहिए और आहार औषषि, शास्त्र और अभयदान ये चार प्रकारके दान शक्ति अनुसार करना चाहिए । पश्चात् गुरुको आशीष लेकर घर जाना चाहिए । सेवक- .. फूलचन्द सूरचन्द दोशी-ईडर। .

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