Book Title: Digambar Jain Vratoddyapan Sangrah Author(s): Fulchand Surchand Doshi Publisher: Digambar Jain Pustakalay View full book textPage 4
________________ ७-शांतिचक्रोद्यापन+, (पंचपरमेष्ठि ५, मंगल ४, लोकोसम ४, शरणभूत ४, जैनधर्म १, बयादि अष्टदेवी ८, विद्यादेवता १६, शासनदेवता २४, भवनवासी १०, व्यंतर ८, ज्योति केन्द्र २, कल्पवासो १२ दिग्पाल १०, पक्षदेवता २४, नवग्रह ९)=१४१ और ईशान दिशामें मंडलके बहार अनावृत्तका १ ज १४२ ___ उपर छपे माफिक व्रतोंके उद्यापनका मंडल बर्गलाकार या चतुष्कोण, निकाले । पंडलमें पांच प्रकारके रंग पूरना चाहिए। ये पांच प्रकारके घान्य (जैसे उड़द, मूग, पनाको दाल सफेद चावल, पोले चावल और कुकुमसे सुशोभित धनाधे । कोष्टक निकालनेवालेको याद रखना चाहिए कि मध्यम कमल कणिकामें सबसे पहिले ॐकार निकाले। फिर उसके आगे पुष्पोंसे (पोले चावलोंसे) मालाकार निकालकर उसके आगे अष्टकोष्टक वर्तुलाकार निकाले । जो ज्ञानावरणादि अष्टकर्म रहित सिद्धपरमेष्ठिके गिने जाते हैं। या उसको अहदस कमल भी कहते हैं। वह कोष्टक उमापन के कोष्ठककी गिनतोमें नहीं गिने जाते हैं। मंडपको चारों तरफसे ध्वजाओंको पंक्ति ओंसे सुशोभित करे और तोरण चंदोवा, चन्दनमाला { आशोपालवके पत्तोंके तोरण) और केलेके स्तम्भोंसे सुशोभित बनावें मंडलके बीच में सिंहासन स्ववे, जिसमें अभिषेकके बाद भगवानकी प्रतिमा और यंत्र बिराजमान करे। + शांतिचक्र मंडलमें (नवग्रहके कौष्टक ) मंहलके बाहर मंडल के वर्तुलको अडकर दशो दिशामें निकाले और अनावृतका कोष्टक मंडलको ईशान दिशामें बाहर निकालें।.. .Page Navigation
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