Book Title: Dharmratna Manjusha Part 01 Author(s): Devvijay Gani Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 2
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra धर्म मंजूषा १ www.kobatirth.org. ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ ॥ श्रीचारित्रविजयगुरुन्यो नमः ॥ ॥ श्रीधर्मरत्नमंजूषा ( दानादिकुलकटत्तिरूपा ) प्रारभ्यते ॥ ( प्रथमो नागः ) ( कर्ता — श्रीदेव विजयगणी ) Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir छपावी प्रसिद्ध करनार - पंमित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा ) ॐ नमो नानिनृपाल - संजवाय स्वयंवे ॥ विलसत्केवलालोक - लोकालोक विकासिने ॥ ॥ १ ॥ श्रेयसे श्रीमदीक्ष्वाकु — कुलालंकारकारिणे ॥ त्रैलोक्य कमलाराम - विकासैक विवस्वते ॥ ॥ २ ॥ युग्मं ॥ श्रीशांतिर्विलसत्कांति - रजखं सृजताविं ॥ भूहिश्वत्रये शांति - स्मिन कु. ॥ ३ ॥ तु विश्वविश्वक- स्वामिने नेमिनेऽर्द्धते ॥ लसल्लक्ष्मी निवासाय | नाकिने || || श्वसेन धराधीश - वंशाकाशकनास्करः । पातु पुण्यात्मनो नित्यं । श्री For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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