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धर्म
मंजूषा
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॥ श्रीजिनाय नमः ॥
॥ श्रीचारित्रविजयगुरुन्यो नमः ॥
॥ श्रीधर्मरत्नमंजूषा ( दानादिकुलकटत्तिरूपा ) प्रारभ्यते ॥
( प्रथमो नागः )
( कर्ता — श्रीदेव विजयगणी )
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छपावी प्रसिद्ध करनार - पंमित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा )
ॐ नमो नानिनृपाल - संजवाय स्वयंवे ॥ विलसत्केवलालोक - लोकालोक विकासिने ॥ ॥ १ ॥ श्रेयसे श्रीमदीक्ष्वाकु — कुलालंकारकारिणे ॥ त्रैलोक्य कमलाराम - विकासैक विवस्वते ॥ ॥ २ ॥ युग्मं ॥ श्रीशांतिर्विलसत्कांति - रजखं सृजताविं ॥ भूहिश्वत्रये शांति - स्मिन कु. ॥ ३ ॥ तु विश्वविश्वक- स्वामिने नेमिनेऽर्द्धते ॥ लसल्लक्ष्मी निवासाय | नाकिने || || श्वसेन धराधीश - वंशाकाशकनास्करः । पातु पुण्यात्मनो नित्यं । श्री
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