Book Title: Dharmna Darwajane Jovani Disha Athva Tattvatattva Vichar
Author(s): Amarmuni
Publisher: Amarvijay Jain Pathshala
View full book text
________________
॥ ॐ नमो शांतमूर्त्तये ॥
॥ धर्मना दरवाजाने जोवानी दिशा. ॥
॥ मंगलाचरण. ||
दुहा.
वीतराग वाणी नमुं, सूत्र समुद्र अगाध ।
॥ २ ॥
11 3 11
प्रवेश करवा तेहमां, प्रकरण नही छे बाध ॥ १ ॥ परंपराना ज्ञाननो, छे जेह मांहि माल । छोडी कुमति तेहने, चाले अपणी चाल गोतां मारे तेहमां, मारि हाथ चउ फेर । कुर्क दरपणनी परें, मनमां बांधे जेर साचे कूं जूठा कहें, जूठेकु कहे साच । अरथ अनर्थ मतिथी करि, नाचे बहु विध नाच ||४|| माटे तत्त्व दिशा ग्रही, ग्रही वली गुरुना पाय । भणे भणावे तेहनो, दुःख सब दुर पलाय ॥ ५ ॥ समकित नथि मिथ्यात्व छे, जिहां नही शुद्ध विचार | दरवाजो नथी धरमनो, छे चउगतिनुं द्वार || ६ || एम जाणी हुं आदरु, समकित तणो विचार । दिशावलोकन कारणे, लखिशुं बोल दुचार ॥ ७ ॥
१ सूत्ररूप समुद्रमां गोतां मारवाथी, अमारा ढूंढक, भाइयो प्रकरणो जूवे छे तेनो पण आशय, गुरु विनाना समज्या वगर, दर्पणमां प्रतिबिंब जोवावाला अज्ञानी कुकडानी परे, ग्रंथकारो प्रति जेर बांधे छे, परंतु योग्य विचार करी सकता नथी । दूहो. ३
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 218