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भूमिका
क्योंकि वे हिन्दी को अपनी राष्ट्र-भाषा समझते हैं । राष्ट्रभाषा का गौरव उनके मन में सदा से रहा है ।
प्रस्तुत में, धर्म - वीर सुदर्शन के विषय में, मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ । धर्म - वीर विशेषण इस भाव को अभिव्यक्त करता है, कि सुदर्शन धर्म की आराधना से ही वीर बना था । सहज जिज्ञासा उठती है, कि यह सुदर्शन कौन था ? किस देश का था, किस जाति का था और इसके जीवन की क्या विशेषता थी, कि किसी कवि को उसके जीवन को आधार बना कर अपने युग की जन-चेतना के समक्ष धर्म और सदाचार का महत्त्व बतलाने की प्रेरणा मिली ? एक बात मैं यहाँ स्पष्ट कर दूँ । धर्म-वीर सुदर्शन का चरित्र अनेक लेखकों ने लिखा है और अनेक भाषाओं में लिखा गया है । संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में धर्म-वीर सुदर्शन का जीवन बहुत पहले ही लिखा जा चुका था, किन्तु आधुनिक हिन्दी में और वह भी अलंकृत हिन्दी में काव्यमय रचना प्रथम बार ही कवि श्री जी के द्वारा प्रस्तुत की गई है । सुदर्शन कौन था और किस देश का था तथा किस जाति का था ? इन सब प्रश्नों का समाधान पाठक प्रस्तुत काव्य पुस्तक को पढ़कर ही पा सकेंगे । अथ से इति तक कथा को दुहराने की यहाँ पर आवश्यकता नहीं है । परन्तु यहाँ पर इतना जानना तो अवश्य ही अभीष्ट है, जिस वासना और कामना का मनुष्य दास बना रहता है, उस कामना और वासना पर सुदर्शन ने साधु बन कर नहीं, गृहस्थ में रहते हुए भी, प्रभुत्व प्राप्त कर लिया था । शास्त्रों में ब्रह्मचर्य की महिमा और गरिमा की जो दीर्घ प्रशस्ति प्रस्तुत की गई है, उसका साकार रूप सेठ सुदर्शन था । सेठ सुदर्शन के जीवन के कण-कण में जैन संस्कृति परिव्याप्त थी । उसके अस्थि और मज्जागत संस्कार कुछ इस प्रकार के थे, कि उसका जीवन प्रारम्भ से ही धर्ममय और सदाचारमय रहा था । सुदर्शन के जीवन का पूर्ण चित्र पाठक तभी पा सकेंगे अथवा देख सकेंगे, जबकि वे उसके इस काव्यमय जीवन को प्रारम्भ से अन्त तक पढ़ जाएँगे । इस काव्य में जो कुछ कहा गया है, वह काल्पनिक नहीं है, बल्कि मानव की इस धरती पर घटित सत्यमयी घटना है । पर आज नहीं, आज से सैकड़ों वर्षों पूर्व, बल्कि हजारों वर्ष पूर्व यह घटना भारत की इसी पवित्र धरती पर घटी थी, जिसका अंकन आज के कवि ने, आज की भाषा में और आज के मानव को सदाचार की महिमा बताने के लिए किया है ।
प्रस्तुत काव्यमय जीवन चरित्र के रचयिता गुरुदेव परम श्रद्धेय राष्ट्र - सन्त कविरत्न उपाध्याय श्री अमर मुनि जी महाराज हैं । आपने इस प्रस्तुत काव्य के अतिरिक्त अन्य भी बहुत-से काव्य ग्रन्थ लिखे हैं, जिनमें सत्य 'हरिश्चन्द्र' बहुत ही प्रसिद्ध है, 'श्रद्धांजलि' आपका एक खण्ड काव्य है । इसके अतिरिक्त आपने अध्यात्म, सांस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय गीतों की रचना भी की है, जिसका प्रकाशन समय-समय पर 'अमर पुष्पाञ्जलि, अमर गीताञ्जलि, अमर कुसुमाञ्जलि और संगीतिका' के नाम से हो चुका है । आपकी कविताओं का संग्रह कविता - कुञ्ज और अमर - माधुरी में हो चुका है । इस प्रकार कवि श्री जी महाराज ने समय-समय पर समाज और राष्ट्र में जागरण लाने के लिए अनेक सुन्दर काव्य ग्रन्थों की रचना की है । आपके
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