Book Title: Dharmavir Sudarshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 9
________________ - भूमिका कि मन की पवित्रता ही उसके जीवन-विकास का आधार है । मानव योद्धा नेपोलियन ने एक बार कहा था-“Be a man of action and high character. मनुष्य को सदा कर्मशील रहना चाहिए और सदा चरित्रशील रहना चाहिए ।" जो मनुष्य कर्मशील है और चरित्रशील है वह संसार में कहीं पर भी क्यों न चला जाए, उसका आदर और उसका सत्कार सर्वत्र किया जाता है । जिस मनुष्य के पास सदाचार की और चरित्रशीलता की पूँजी है, उस व्यक्ति के लिए विदेश भी अपना स्वदेश बन जाता है और उसके लिए परजन भी स्वजन बन जाता है । ___ भारतीय संस्कृति सदा से इस तथ्य को स्वीकार करती रही है, कि मनुष्य स्वयं इन्द्र है और इसकी इन्द्रियाँ सदा इसकी दासी रही हैं । पर कब, जबकि मनुष्य अपनी इन्द्रियों का निग्रह कर सके और अपने मन का निरोध कर सके । इन्द्रियों के निग्रह को और मन के निरोध को ही दर्शन-शास्त्र में योग कहा गया है । योग-साधना वही व्यक्ति कर सकता है, जो अपने जीवन को संयम में रख सके और अपने जीवन को अपने नियन्त्रण में रख सके । भारतीय संस्कृति इन्द्रियों का दास होने में वीरता स्वीकार नहीं करती, अपनी इन्द्रियों का स्वामी बनने में ही वह वीरता मानती है । एक महान् विचारक ने कहा है- "Most powerful is he who has himself in his own power.” कहने का अभिप्राय यह है, कि शक्ति -सम्पन्न वही है, जो अपने मन पर और इन्द्रियों पर अधिकार कर सके । यूनान के महान् विचारक पाइथागोरस ने अपने युग की मानव-जाति को सम्बोधित करते हुए कहा था-"No man is free who cannot command himself. मैं उस व्यक्ति को स्वतन्त्र नहीं कह सकता, जो अपने आप पर संयम का नियंत्रण न कर सके ।" संयम-शीलता और चारित्र-शीलता मानव-जीवन का एक ऐसा गुण है, जिसमें संसार के समग्र गुणों का समावेश हो जाता है । स्वर्ग के देव, धरती के राजा और नगर के नगर-पति किसी संत के चरणों में जब नत-मस्तक होते हैं, तब उसका आधार उस संत का संयमी जीवन ही होता है । भारतीय संस्कृति ने प्रारम्भ से ही सम्राट की अपेक्षा एक संयम-शील संत का ही सत्कार, सम्मान और समादर किया है । भारतीय संस्कृति के साहित्य में आपको सर्वत्र एक ही स्वर झंकृत मिलेगा सदाचार और संयम । सदाचार और संयम ही सबसे बड़ा धर्म है । इस धर्म की व्याख्या और परिभाषा करने के अनेक साधनों में किसी महापुरुष के जीवन-चरित्र का कथन करना भी एक साधन रहा है । संयम क्या है, सदाचार क्या है और धर्म क्या है ? इस तथ्य को और इस सिद्धान्त को केवल किसी शास्त्र के पन्नों के आधार पर ही नहीं समझा जा सकता, जब तक कि जन-चेतना के समक्ष उसका साकार रूप उपस्थित न कर दिया जाये । धर्म और सदाचार का साकार रूप क्या है ? धर्मी और सदाचारी व्यक्ति का जीवन । जब हम किसी धर्मी और किसी सदाचारी व्यक्ति के जीवन को देख लेते हैं, अथवा सुन लेते हैं, तब हमें उस धर्म का और उस सदाचार का यथार्थ बोध हो जाता है । गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बहुत से सुन्दर सिद्धान्तों की शिक्षा दी । पहले उसे ज्ञान-योग सिखाया, फिर उसे कर्म-योग सिखाया और अन्त में उसे भक्ति-योग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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