Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 14
________________ PERSO BACCORarerevoces Grearrangeena HINDISORDERABARISegree श्री धर्म प्रवर्तन सार. र वळी धर्म प्रवर्त्तनना वीजा बे नेद ; व्यवहार धर्म ६ प्रवर्तन अने निश्चय धर्म प्रवर्तन तेमांप्रथम व्यवहार धर्म प्रवर्त्तननी उळखाण करावे . एटले व्यवहारनयनानेदनी व्हेंचण करीशुं तेमां केटलाएक नेद मिथ्यात्व पक्षी ने अने केटलाएक नेद समकित पक्षी . ते सर्वेनी उळखाण | थशे. कयुं . नय चक्रसार ग्रंथेः संग्रह गृहीत वस्तु नेदांतरेण विनजनं व्यवहरणं प्रवर्त्तनं वा व्यवहारः सद्विविधः शुद्धो शुद्धश्च शुद्धोद्धिविधः वस्तुगत व्यवहारः धर्मास्तिकायादि अव्याणां स्वस्वचलन सहकारादि जीवस्य लोकालोकादि ज्ञानादिरूपः 6 स्वसंपूर्ण परमात्मन्नावसाधनरूपो गुणसाधकावस्थारूपः गुण श्रेण्या रोहादि साधन शुद्ध व्यवहारः अशुद्धोपि द्विविधः । सद्नता सद्भूत नेदात् सद्भुत व्यवहारो झानादिगुणः 0 परस्परं निन्नः असदलत व्यवहारः कषायात्मादि मनुष्योहं । देवोहं सोपिद्विविधः संश्लेषिता शुद्धव्यवहारः शरीर मम अहंशरीरी असंश्लेषिता सद्भुत व्यवहारः पुत्र कलत्रादि तोच. उपचरिता नुपचरित व्यवहार नेदात् द्विविधौ तथाच विशेषावश्यके व्यवहरणं व्यवहारः ए सतेण व्यवहार एव सामान्नं व्यवहार परोव्वजन विसेस तेणव्यवहारः व्यवहरणं व्यवहारः व्यवहरतिसइतिवाव्यवहारः विशेषतो व्य वहीयते निराक्रियते सामान्यं तेनेतिव्यवहारः लोकव्यवहार 8) परोवा विशेषतो यस्मात्तेन व्यवहारः न व्यवहारा वखधर्म ६ प्रवर्ति तेनेऋते सामान्यमिति स्वगुण प्रवृत्ति रूप व्यवहार R GARDar@neeroord OreoneRom Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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