Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah
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श्री धर्म प्रवर्तन सा२. दान एटले जे समये समकितादि आत्मिक गुणनी प्रगटता आत्माथी यश् तेज समये ते दानरूप गुण आत्माए ग्रहण कर्यो ए दान लब्धि पेहेली कही. हवे वीजी लान लब्धि @ कहे . लान एटले जे समकितादि आत्मिक गुणनी प्रगटता आत्माथी थर का, ते लान पूर्वे न हतो ते शहां
आत्मा पाम्यो ए वीजी लान्न लब्धि कही. हवे वळी तेना 3 प्रथम समयेंज ते लब्धि गुणनो नोग पण आत्माज करे , वळी उपत्नोग पण वीजा समयथी आरंनीने यावत् १ केवळझाननी प्राप्ति जे समये थाय तेना आगला समय र सुधी आत्मा करे . ए चार लब्धि कही. हवे पांचमी ७ , वीर्य गुण लब्धि कहे . ते उपर चार लब्धि गवेखी तेमा स्फुर्णा श्रापवानुं सामर्थ्य सादि सांत नांगे अनुन्नव रीते । अंतर्गत स्वरूप रमण करवू, वळी स्वस्वरूप ग्रहण करतेमा व्यापकपणुं करवू, ते शक्तिने वीर्य गुण लब्धि कहीए, ए८ पांच लब्धि दयोपशम नावनी. ते क्रिया आत्मिक जाणवी. ए क्रियानो कर्ता उपरना गुणगणे चढे अने नीचेना गुणगणाने डोमे. यावत् मोहनीय कर्मना दयोपशमने दशमा गुणणाने अंते बेदी यथाख्यात चारित्र कीणमोह वारमा गुणगणे प्रगट करे, अने ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अने
अंतराय ए त्रण कर्मना दायोपशमने वारमा गुणगणना ६ अंते बेदी केवळझान, केवलदर्शन अने दायकनावनी दा
नादिक पांच लब्धि एम सात गुण प्रगट करी दायकना६ वनो नव लब्धि गुणनी पूर्णता पामे. ते माटे मूळ गाथा
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