Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 02
Author(s): Shripad Krishna Belvalkar
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 20
________________ '..Katantra Description-Country paper, Devanagari chiracters, legible and correct writing. The Paribhasavrtti ends on fol. 5-a and is followed by an enumeration of the TS similar to that in 531 of 1887-91 [ = serial No. 29 below] and elsewhere; the last few lines contain the beginning of Ratnapani's work on षट्कारकs. Age - The Ms. is modern in appearance. Author-Bhavamisra or Bhavasarman. Subject - It is doubtful whether the paribhāṣās explained belong to the Kātantra grammar. The list of Ants given at the end has the Colophon इति कातंत्रे परिभाषासूत्रसंदोहः समाप्तः: but the order of this list is not followed in the वृत्ति. Begins - श्रीगुरुभ्यो नमः || अथ परिभाषासूत्राणि । प्रकीर्णके विकास कारिकया संज्ञा च परिभाषा च विधिनियम एव च । प्रतिषेधोधिकारश्च षडिधं सूत्रलक्षणं । मिति भाष्यंते परितो यस्मात्परिभाषा ततः स्मृताः। भासामर्था प्रयोगाश्च लिष्यंते भावशर्मणा ॥ अर्थवग्रहणे नानर्थकस्य ग्रहणम् । मेषो मेषेण युध्यते दासा क्योति कर्माणि एषसपरो व्यंजने लोप्य इति न भवति । अत्रैक्सयोरमर्षकरवाद । तर्हि आभ्यामित्यत्र दीर्घोस्तु कथं वृक्षाभ्यां अत्रैषा परिभाषाऽनित्या पाहि. भाषिकमनित्यमिति वचनात् ।। गौणमुख्ययोर्मुख्यस्य कार्य etc. Ends - इति परिभाषा ।। प्रमादादत्र दुष्टं चे किं(त्कि)चिल्लिखितवानह। संशोध्य स्थापनीयं तःध( तद्ध)र्मार्थ साधुभिर्बुधैः॥ इति श्रीभावमिश्रकृता परिभाषावृत्तिः ग्रंथश्लोकसंख्या १४८ ॥ श्रीरस्तुः । The beginning of rainfor's work — ...ॐनमः ॥ शिवेन साकृतविलोकिताया भावोदयप्रस्खलदंचलाया। लज्जाकुलाया नमिताननायाः पायादुमाया मनसोऽनुबंधः ॥ १॥ यस्माज्जडानामपि देववाण्याः प्रागल्भ्यमाविर्भवतीह शीघ्र ।

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