Book Title: Dashvaikalikam
Author(s): Kanchanvijay, Kshemankarsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 8
________________ सुमति साधु दशवै० ग्रन्धक ए आ ग्रन्थनुं भवविरहावित श्रीहरिभद्रसूरीश्वरमहाराजनी वृत्तिने अनुसरवापणुं जणाब्युं छे, पण तेओश्रीए आ ग्रन्थ क्यारे रच्यो तेनो स्पष्ट उल्लेख नथी, परंतु आ ग्रन्थना छेडे बे पुष्पिकाओ आपी छे ते उपरथी एक बात चोकस बाय छे के-आ प्रन्य सं. १५१६ पहेलां थयेलो छे. वळी "जैन साहित्यनो इतिहास" पृ. २५२ मां जणाव्या प्रमाणे-संवत् ११८८ मां पत्तनमा वाचक शि० सुमतिसूरिनी रचेली श्रीदशवैकालिकटीका ताडपत्र पर लखाइ. प. पू. बहुश्रुत, आगममंदिरोनां संस्थापक, आगमवाचनाना दाता, अनेक ग्रन्थना प्रणेता, आगमोद्धारक गुरुदेव श्रीआनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजे आ संस्थानो प्रादुर्भाव कर्यो हतो अने तेथी आ संस्थाए-श्रेष्टि देवचन्द लालभाई जैनपुस्तकोद्धार फंडे अनुक्रमे आगमो विगेरेना १०२ अन्थो आज सुधी बहार पाड्या छे, तेवी रीते आ पन्थ १०३ नंबरमा बहार पाडे छे. प.पू. आगमोद्धारक गुरुदेव श्रीनी इच्छा अवचूरि वगेरे लघु टीकाओ आवालोपयोगी बहार पाडवानी हती, तेथी आ संस्थाए ते कार्य पण आरंभ्यु अने तेवा ग्रन्थोमां आ ग्रन्थनी प्रेसकॉपी प. पू. गुरुदेवश्रीनी सेवा करनार पू. गुणसागरजी महाराज पासेथी मेळवी अने संपादन करवाने माटे मुनि श्रीकंचनविजयजी तथा मुनि श्रीक्षेमकरसागरजी महाराजने विनंति करी अने तेओश्रीए अमारी विनंतिने ध्यानमा लई गुरुदेवश्रीना पट्टधर श्रुतस्थविर, विद्याव्यासंगी, आचार्यमहाराज श्रीमाणिक्यसागरसूरीश्वरजी पासे एक वखतर्नु प्रूफ जोवडाववापूर्वक आ ग्रन्थy संपादन कयुं छे. अने आ प्रन्थने शणगारवा माटे लघु अने बृहत् विषयानुक्रम अने सूत्रादि अकाराविक्रम वगेरे आठ परिशिष्टो आप्यां छे. आ श्रीदशवकालिकसूत्र संबंधां संपादकीय निवेदन घणु मननीय छे छतां तेना साहित्य अंगे कंईक विवरण अत्रे आपवामां आवे छे. Jain Education Intema ForPrivate sPersonal use Only www.jainelibrary.org

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