Book Title: Dashvaikalikam
Author(s): Kanchanvijay, Kshemankarsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 13
________________ कारणथी लिंगनी महत्ता नक्की थाथ छे. परंतु विरतिने मेळववा, टकाववा अने यथोत्तर सफल बनाववा ज्ञाननी पण जरूर छे, केमके संयम-जयणाना पालन माटे बोधनी जरूर, ते बोध आगमोद्वारा मेळववानो अने ते मेळववा मनुष्यपणुं आदि जोइए. तेवो मनुष्य भव पण प्राप्त थया छतां आर्य क्षेत्र आदि मळवू जोहए. अने ते पण मळी गया छतां दीर्घ आयुष्य जोइए. जो ते न होय तो मळेला साधनो ने अनुकूल संयोगोमां पण ते साधी शकतो नथी. आधी दीर्घ आयुष्य पण जोइए. जो दीर्ध आयुष्य न होय तो अ॒ थाय? ते वात आ सुत्रना रचनाना प्रसंगमांथी समजवा मळे छे. एटलुंज नहि पण ते हेतुथीज आ सूत्रनी रचना करवानी जरूर पडी. भगवान् प्रभवस्वामीए पोतानी पाटे अर्थात् शासन चलाववाने माटे योग्यने माटे उपयोग मूक्यो. कोई तेवो न मळवाथी ते उपयोग अन्ते सजगृहीमां यज्ञ करता शय्यंभव भट्ट उपर जईने ठयों. एथी 'अहो कष्टं आदि साधुद्वारा यज्ञमां बोलावायु. शय्यंभवे तलवास्वास गुरुने पूछयु. मुरुए सत्त्व तो यशस्थंभ नीचे बताव्यु. स्यां श्रीशांतिनाथजीनी प्रतिभा देखी, बोध पामी, आचार्यश्री. प्रभवस्वामी पासे दीक्षा लीधी. त्यारे रुदन करती तेमनी पत्नीने लोको पूछे छे के छे कंइ ? तेना जवाबमां 'ममा कंईक' को. तेज गर्भमा पूर्णकाले जन्मेला पुत्रने 'मनक' नामथी बोलावायो. छोकरानी रमतमा 'नबापो' शब्दथी बाप पासे गयेलो ते बाप शय्यंभवसूरिने बाहिरभूमिए मळ्यो. पछी दीक्षा आपी. तेने आ भवना संबंधथी भवसमुद्रथी पार उतारवा आयुष्य मारे उपयोग मूक्यो. त्या तो सागर ने गागरनु आंतसं जोयु: अस्प ज आयुष्य (छ महिनाने आयुष्य)! शुं करयुं भवसागर तरवा शाखसागर जोइए. त्यांवो मायुष्यनी गागर छेकर बाथी शाखासागरहुं मंथन करी गागरमा माय वेषी सागरसरणी गागर दयाकालिकोनी ॥ Jain Education in tamatione For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org

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