Book Title: Dashvaikalikam
Author(s): Kanchanvijay, Kshemankarsagar
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 12
________________ सुमति साधु० श्री दशवे० ॥ १० ॥ Jain Education Intera णमो सिरिदसकालियसुत्तकारगस्स मणगपियरस्स श्रीसुमतिसाधुरिविरचित लघुवृत्तिसहितश्रीदशवैकालिकसूत्रना अंगे सम्पादकीय - निवेदन “सिभवं गणहरं जिणपडिमादंसणेण पडिबुद्धं । मणगपिअरं दसकालिअस्स निज्जूहगं वन्दे || " श्रीदेवगुरुप्रतापे संपादित करेल श्रीदशवैकालिकसूत्र विद्वज्जनोना करकमलमां सादर उपस्थित करतां प्रन्थ, वृत्ति अने संपादन संबंधी कईक जणावाय के. जेम समुद्र तरवा माटे पार ऊतरवाना मार्गना जाणवापणुं अने पार उतरवाना प्रयत्ननी-गतिनी जरूर छे, तेम आ जैनशासन भवसमुद्रथी पार ऊतारवा माटे संलग्न वे मार्गनुं सहकारीपणुं स्वीकारे छे. ते बे मार्ग ज्ञान अने क्रिया. अर्थात् एकलुं ज्ञान पण नका माने छे अने एकली क्रिया पण नकामी माने छे. ज्ञानीनी निश्राए क्रिया करनारो अगर क्रियावाळो ज्ञानी एम बन्ने माने छे. पटलं ज नहि पण ज्ञान करतां किया उपर सापेक्ष रीते वधु भार मूके छे. क्रिया वगरना ज्ञाननी कंईज कीमत आंकी नथी. अर्थात् विरतिनी जरूरियात मानी छे. आधी ज गृहस्थपणामां केवली थयेलाने पण देवता वेष अंगीकार कर्या पछी वंदन करे छे. आ For Private & Personal Use Only ॥ १० ॥ www.jainelibrary.org

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