Book Title: Chandraraj Charitra
Author(s): Bhupendrasuri
Publisher: Saudharm Sandesh Prakashan Trust

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Page 6
________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रतस्वामी भगवान के समय की यह प्राचीन कथा है। भव्य जीवों की भव व्यथा का विनाश करनेवाली धर्म कथा है यह ! यह एक ऐसी अद्भुत, अनुपम और रोमांचकारी कहानी है जो मानवजाति की सैंकडों सुलगती हुई समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है। इस कहानी के वाक्य-वाक्य में वैराग्य रस भरा पड़ा है। इस कहानी में कदम-कदम पर कर्म की करुण कथा भरी पड़ी है। जंबूद्वीप के भीतर दक्षिण भरतक्षेत्र आता है। इस क्षेत्र के मध्य में पूर्व दिशा में अत्यंत मनोहर और इंद्र की नगरी के समान आभापुरी नामक नगरी थी। इस नगरी का सौंदर्य देखकर लंका-अलका आदि नगरियां भी शरमा कर अपने मुंह छिपा लेती थी। इस आभापुरी में भिन्नभिन्न प्रकार के बाजार थे। नगरी के ऊँचे-ऊँचे प्रासादों पर ध्वजाऐं फहराती-लहराती रहती थी। इस नगरी में रहनेवाले धनवान लोग एक से बढ़कर एक दानवीर थे। कृपण मनुष्य इस नगरी में ढूँढ कर भी नहीं मिलता था / इस नगरी के व्यापारी जितने धनवान थे, उतने ही नीतिमान भी थे। नगरी में रहनेवाली स्त्रियाँ रूपमती भी थीं और उतनी ही शीलवती भी। रमणीय और आकाश को चूमने वाले ऊँचे ऊँचे सेकड़ों जैन मंदिरों से यह नगरी जैन धर्म की उज्जवलता में चार चांद लगा रही थी। इस आभापुरी के राजा का नाम था वीरसेन ! राजा वीरसेन न्यायी, पराक्रमी और नीतिमान था / राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत् पालन करता था और इसलिए समस्त प्रजा में अत्यंत प्रिय था। राजा वीरसेन की पटरानी का नाम था वीरमती ! एक दिन की बात..... आभापुरी में कहीं से अनेक घोड़ों के सौदागर आ पहुँचे। इन सौदागरों के पास अनेक जातियों के उत्तमोत्तम - घोड़े थे / जैसे ही राजा को समाचार मिला, उसने उन घोड़ों की परीक्षा करवाई और उन सौदागरों को उनके घोड़ों का उचित मूल्य चुका कर उसने सभी घोड़े ख़रीद लिए / घोड़ों के सौदागर बहुत खुश होकर चले गए। राजा ने इन सौदागरों से जो घोड़े खरीदे थे, उनमें एक अत्यंत सुंदर घोड़ा था, लेकिन यह घोड़ा वक्र गतिवाला था। इस घोड़े के पुराने मालिक ने उसको जो शिक्षा दी थी, उसके कारण उसकी गति वक्र हो गई थी। *P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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