Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकुटिलत्व अर्करीतिः मला अकुटिलत्व (वि०) कुटिलता रहित, सरल (सुद० १/२७) (ख) अर्ककीर्ति का अपर नाम रविरीति। रविरीतिरर्ककीर्तिः। अकुण्ठ (वि०) अनल्पपरिणामभृत। (जयो० १०॥ (जयो० ७०४/५) अर्कस्य सूर्यस्य कीर्तिरिव कीर्तिर्यस्य अकुष्ट (वि०) अबाध, स्थिर, प्रबल। *अत्यधिक, अबाध, सः। (जयो० ४७/३४) स्थिर, प्रबल। जिसकी कीर्ति अर्क/सूर्य के समान है। अकुतः (क्रि०वि०) कहीं से नहीं, कुछ भी नहीं। अर्कचारः (पु०) सूर्योदय (जयो० १८/२) अकुप्यम् (नपुं०) सोना, चांदी, बिना खोट की धातु। स्वस्तिक्रियामतति विप्रवदर्कचारे (जयो० १८/२) अकुलीन (वि०) नाभेरुत्पन्न उत्तमकुलजात। (जयो० वृ० (१/३५) सूर्योदय विप्र के समान स्वस्तिक्रिया शोभनक्रिया/स्वस्तिपाठ अकुशल (वि०) असंयम, अविरति। अशुभ, दुर्भाग्यपूर्ण। को प्राप्त हो रहा है। अकुशलभावः (पुं०) असंयमभाव, अशुभभाव। अकुशलो अर्कता (वि०) आक सदृश। (जयो० ७/६९) ___ भावो अवरत्यादिरूपः। अर्कतापरिणत (वि०) आक सदृश सम्भूत। (जयो० ७/६९) अकूपारः [नञ्+कूप+ऋ+अण्] ०समुद्र, सूर्य, ०कछुआ, अर्कः क्षुद्रवृक्ष विशेषस्तत्तायाः परिणतौ सम्भूतौ। अर्थात् ०पाषाण। अकृच्छ (वि०) ०सरलता, सुविधाजनक, ०कठनाई से युक्त। जो अर्क/क्षुद्रवृक्षविशेष है वह उत्पन्न हुआ। अकृत (वि०) [नञ्+कृ+क्त] जो नहीं किया गया, अधूरा, अर्कदलम् (नपुं०) आक पत्र। (जयो० ६/१८) त्रुटित, अनिर्मित, अपरिपक्त्व। ०कष्टदायक। ननु परिग्रह अर्कदलजातिः (स्त्री०) आकपत्र की उत्पत्ति। (जयो० ६/१८) एष बलादककृदथ। (जयो० २५/२७) कटुकं परमर्कदलजाति:। (जयो० ६/१८) आक के पत्तों अकृत् कष्टदायकोऽस्ति। (जयो० २५/२७) की जाति अत्यन्त कटुक होती है। अकृतता (वि०) कष्टदायकता। त्रुटि पूर्ण। अर्कदेवः (पु०) अर्कप्रभ देव। (समु० ६/२४) कापिष्टलोऽभ्येत्य अकृतार्थ (वि०) असफल। बभूव पुत्रः, किलार्कदेव: स मुदेकसूत्रः। (ससु ६/२४) अकृतात्मन् (वि०) अज्ञानी, मूर्ख, असंतुलित। रश्विवेग ही कापिष्ट स्वर्ग में जाकर अर्कप्रभदेव हुआ। अकृत्य (वि०) वृत्ति अभाव । (वीरो० १७/१९) ०अपूर्ण | अर्कदेवः (पुं०) अर्कदेव, अर्ककीर्ति, अकम्पनदेश का राजा। गृहस्थस्य वृत्तेरभावो ह्यकृत्यं भवेत्त्यागिनस्तद्विधिर्दुष्टकृत्यम्। (जयो० १८/६८) अर्कदेवः सूर्यनामनरपतिः। (जयो० अकृष्ट (वि०) [न+कृष्+क्त] ०वंजर, ०उपज रहित भूभाग वृ० १८/६८) बिना जुता, अकृषता। अर्कपराभवचक्रबन्धः (पुं०) कवि द्वारा सर्ग के अन्त में दिया अक्का (स्त्री०) [नञ्+कत्+टाप्] माँ, माता, जननी। गया छन्द। इसके प्रत्येक चरण में १९, १९ अक्षर हैं। अक्त (वि०) [अक्+क्त] अभिषिक्त, सिंचित, सना हुआ। वन्दना अर्क: सक इह परम्पराध्वंसभवाश्रवम्। अक्तम् (अञ्च्+क्तृ) कवच, वर्मन्। ऽ।ऽ, 551, III, 151, 55। 151, 5 अक्रम (वि०) [नास्तिक्रमो यस्य] अव्यवस्थित। अर्कप्रभदेवः (पुं०) अर्कदेव। कापिष्ट स्पर्श को प्राप्त राजा। अक्रिय (वि०) निष्क्रिय, क्रिया हीन। (जयो० वृ०६/२४) अर्कः (पुं०) सूर्य, दिनकर, रवि। (जयो० २/११) जयो० वृ० ७/७३ अर्क एव तमसावृतोऽधुना। अमावस्या के दिन सूर्य अर्कबिम्ब: (पुं०) सूर्यमण्डल। (जयो० १५/४४) के समान इस माङ्गलिक बेला में। अर्कयशः (पुं०) अर्ककीर्ति राजा, भरतेशसुत, अकम्पन देश अर्कः (पुं०) आक, आकवृक्ष, क्षुद्रवृक्ष। अर्क: क्षुद्रवृक्षविशेषः का नृप। (जयो० १९) (जयो० वृ० ७/६७) अर्करीतिः (स्त्री०) सूर्यचेष्टा, सूर्य की उदय रूप चेष्टा। (जयो० अर्ककीर्तिः (पुं०) अर्ककीर्ति, भरतेशसुत। भरतेशसुतस्य वृ० १८/५१) अम्भोरुहस्य सहसा समुदर्करीतिं स्वीकुर्वतो अर्ककीर्तेः अनेकसदस्यैः। (जयो० वृ० ४/३०) अकम्पनदेश मधुरसं प्रतिजातगीतिम्। (जयो० १८/५१) सूर्य की उदय रूप का राजा। (जयो० ४/१) चेष्टा मधुरस और कमल की स्पष्टता को प्राप्त हो रहा है। आदिराज इमाह सुरम्यमर्ककीर्तिमचिरादुपगम्य। (जयो० अर्कस्य सूर्यस्य रीति चेष्टामुदयलक्षणामुत चोदकरीतिम्। (जयो० ४/१) वृ० १८/५१) ०अर्ककीर्ति नामक राजा। For Private and Personal Use Only

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