Book Title: Bramhacharya Darshan Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय श्रद्धेय कविरत्न उपाध्याय श्री अमरचन्द्रजी महाराज अपने इस वर्तमान युग के सुप्रसिद्ध सन्त हैं । जैनों के सभी सम्प्रदाय एवं उपसम्प्रदाय उनके शील-स्वभाव से और उसके पाण्डित्य एवं विद्वत्ता से भली-भाँति चिरपरिचित हैं । उनके व्यक्तित्व उनकी विचार शैली और प्रवचन पद्धति से सर्वत्र सुप्रसिद्ध दार्शनिक, विचारक एवं तत्व - चिन्तक लिखते और बोलते हैं तो उनका वह लेखन और का तेज सर्वत्र पहुँच चुका है। सभी परिचित हैं । वे अपने युग रहे हैं। जब वे किसी विषय पर भाषण साधिकार होता है । उनकी प्रवचन- शक्ति, व्याख्या-पद्धति और कथन - शैली एवं प्रभावकारी होती है कि श्रोता उनके अमृतोपम वचनों को थकावट और व्यग्रता का अनुभव नहीं करता । आने वाला जिज्ञासा के अनुसार समाधान पाकर परम सन्तुष्ट हो जाता है । उनकी प्रवचन शैली की यह विशेषता है कि गम्भीर से गम्भीर विषय को भी वे सुन्दर, मधुर और सरस एवं सरल बनाकर प्रस्तुत करते हैं । अबोध से अबोध व्यक्ति भी उनकी दिव्य वाणी में से अपने जीवन को सुखद और शान्त बनाने के लिए, कुछ न कुछ प्रेरणा एवं संदेश अवश्य ही ग्रहण कर लेता है । प्रस्तुत पुस्तक 'ब्रह्मचर्य - दर्शन' उनके उन प्रवचनों का संकलन, सम्पादन, संशोधन और परिवर्द्धन है, जो उन्होंने सन् ५० के व्यावर वर्षा वास में दिए थे । इन प्रवचनों को सुनकर व्याबर की जन चेतना और राजस्थान के सुदूर नगरों के लोग भी अत्यन्त प्रभावित हुए थे । इसके पश्चात् अन्य प्रवचनों एवं विचार चर्चाओं में ब्रह्मचर्य - साधना के सम्बन्ध में वे समस्त दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किए गए हैं, जिन्हें ब्रह्मचर्य - साधक के लिए जानना परम आवश्यक है । यद्यपि ये प्रवचन राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश आदि में यथा प्रसंग बहुत पहले दिए गए थे, किन्तु किसी भी महा इतनी मनोमुग्धकारी सुनते हुए, कभी भी श्रोता अपनी-अपनी पुरुष की वाणी को काल और देश के खण्डों में की प्रसुप्त चेतना को जागृत करना ही उनका एक सम्बन्ध में प्रस्तुत पुस्तक में जो कुछ कहा गया है, तर्क - शक्ति, विषय को प्रस्तुत करने की उदारदृष्टि और श्रोता के अनकुण्ठित मन को बाँधा नहीं जा सकता। जन-जन मात्र उद्देश्य होता है। ब्रह्मचर्य के वह उनके सूक्ष्म विचार, तीक्ष्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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