Book Title: Bramhacharya Darshan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 7
________________ झकझोर कर प्रबुद्ध करने की प्रवीण कला का परिचायक है। ब्रह्मचर्य-दर्शन का प्रसार और प्रचार सर्वत्र और सभी वर्ग के लोगों के लिए हितकर एवं शुभकर रहा है। ब्रह्मचर्य-दर्शन का यह तृतीय संस्करण अपने प्रेमी पाठकों के कर कमलों में समर्पित करते हुए मुझे बड़ी प्रसन्नता है। अध्येता एवं पाठक देखेंगे कि पहले की अपेक्षा इस प्रस्तुत-पुस्तक में कवि श्री जी के विचारानुसार कुछ आवश्यक संशोधन एवं परिमार्जन ही नहीं किया, बल्कि विषय-दृष्टि से भी इसे पल्लवित एवं संबधित किया गया है। जब इसके पुनः प्रकाशन का प्रश्न हमारे सामने आया तब हमने यह निर्णय किया कि इसे ज्यों का त्यों प्रकाशित करने से कोई विशेष लाभ न होगा। इसमें भाषा, भाव और शैली की दृष्टि से कुछ नवीनता का आना भी आवश्यक है। ___इसके लिए हमने श्री विजयमुनि जी महाराज से यह प्रार्थना की, कि आप इस कार्य को अपने हाथ में लें। आप इसे जितना शीघ्र तैयार कर सकें, करने की कृपा करें। उनके पास अन्य लेखन-कार्य से अवकाश न होने पर भी हमारी प्रार्थना को आदर देते हुए इस कार्य को उन्होंने हाथ में लिया और बड़ी सुन्दरता के साथ, इसे सम्पन्न किया है। इसके लिए हम श्री विजयमुनि जी के विशेष रूप से आभारी हैं। विजयमुनि जी का मन और मस्तिष्क कवि श्री के प्रवचनों तथा विचार गोष्ठियों के विचारों को वहन करने में कितना सक्षम है, यह संस्करण उसका प्रत्यक्ष निदर्शन है। 'ब्रह्मचर्य-दर्शन' का यह नया संस्करण नए आकार-प्रकार में जनता के कर कमलों में समर्पित करके हमें परम प्रसन्नता है। ओम प्रकाश मन्त्री सम्मति ज्ञानपीठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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